बहुजिनसी - ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥

‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
देह के कारण गणेशपूजन । देह के कारण शारदावदन । देह के कारण गुरु सज्जन । संत श्रोता ॥१॥
देह के कारण कवित्व होते । देह के कारण अध्ययन करते । देह के कारण अभ्यास करते । नाना विद्याओं का ॥२॥
देह के कारण ग्रंथलेखन । नाना लिपियों की पहचान । नाना पदार्थशोधन । देह के कारण ॥३॥
देह के कारण महाज्ञानी । सिद्ध साधु ऋषि मुनि । देह के कारण प्राणी । करते तीर्थाटन ॥४॥
देह के कारण श्रवण होता । देह के कारण मनन बढता । देह के कारण देह में अपना होता। मुख्य परमात्मा ॥५॥
देह के कारण कर्ममार्ग । देह के कारण उपासनामार्ग । देह के कारण ज्ञानमार्ग । भूमंडल में ॥६॥
योगी वीतरागी तापसी । देह के कारण नाना सायासी । देह के कारण ही । आत्मा प्रकट हो सके ॥७॥
इहलोक आणि परलोक । देह के कारण सकल सार्थक । देह बिना निरर्थक । सब कुछ ॥८॥
पुरश्चरण अनुष्ठान । गोरांजन धूम्रपान । शीतोष्ण पंचाग्नि साधन । देह के कारण ॥९॥
देह के कारण पुण्यशील । देह के कारण पापी केवल । देह के कारण अनर्गल । शुचिष्मंत ॥१०॥
देह के कारण अवतारी । देह के कारण वेषधारी । नाना विद्रोह पाखंडकारी । देह के कारण ॥११॥
देह के कारण विषय भोग । देह के कारण सकल त्याग । होते जाते नाना रोग । देह के कारण ॥१२॥
देह के कारण नवविधा भक्ति । देह के कारण चतुर्विध मुक्ति । देह के कारण नाना युक्ति । नाना मत ॥१३॥
देह के कारण दानधर्म । देह के कारण नाना मर्म । देह के कारण पूर्वकर्म । कहते जनों में ॥१४॥
देह के कारण नाना स्वार्थ । देह के कारण नाना अर्थ । देह के कारण होते है व्यर्थ । और धन्य ॥१५॥
देह के कारण नाना कला । देह के कारण न्यून निराला । देह के कारण उत्कठा । भक्तिमार्ग की ॥१६॥
नाना सन्मार्गसाधन । देह के कारण टूटते बंधन । देह के कारण निवेदन । होता मोक्ष लाभ का ॥१७॥
देह सभी में उत्तम । देह में रहता पुरुषोत्तम । सारे घट में आत्माराम । विवेकी जानते ॥१८॥
देह के कारण नाना कीर्ति । अथवा नाना अपकीर्ति । देह के कारण होती जाती। अवतारमालिका ॥१९॥
देह के कारण नाना भ्रम । देह के कारण नाना संभ्रम । देह से ही उत्तमोत्तम । पद भोगते ॥२०॥
देह के कारण सब कुछ । देह के बिना नहीं कुछ । जगह पर ही आत्मा हो लुप्त । जैसे था ही नहीं ॥२१॥
देह परलोक के लिये तारक । नाना गुणों का गुणागर । नाना रत्नों का विचार । देह से ही ॥२२॥
देह से ही गायनकला । देह से ही संगीतकला । देह से ही अंतर्कला । जान पाते ॥२३॥
देह ब्रह्मांड का फल । देह दुर्लभ ही केवल । परंतु इस देह में निर्मल । समझाकर लें ॥२४॥
देह के कारण छोटे बडे । अपने अपने व्यापार करते । उनमें भी छोटे बडे । कई एक ॥२५॥
जो जो देह धारण कर आये । वे सब कुछ तो कर गये । हरिभजन से पावन हुये । कई एक ॥२६॥
अष्टधा प्रकृति के मूल । संकल्प रूप ही केवल । नाना संकल्पों से देहफल । लेकर आये ॥२७॥
हरिसंकल्प था मूलतः । वही अब फल में दिखता । नाना देहांतर में तत्त्वतः । खोजने पर समझे ॥२८॥
बेली का मूल बीज । बेली को उदक रूप समझ । आगे फल में बीज । मूल के अंश में ॥२९॥
मूल के कारण आते फल । फल के कारण होती मूल । इसी तरह से भूमंडल पर । होते रहता ॥३०॥
अस्तु कुछ भी करना । कैसे हो देह के बिना । देह का सार्थक करना । याने अच्छा ॥३१॥
आत्मा के कारण देह हुआ । देह के कारण आत्मा टिका । उभय योग से चलता गया । कार्यभाग ॥३२॥
गुप्तरूप में करे चोरी से । वह आत्मा को समझ में आये । कर्तृत्व इसी स्वभाव से । सब कुछ ॥३३॥
देह में आत्मा रहता । देह पूजा से आत्मा संतुष्ट होता । देह पीडा से आत्मा क्षुब्ध होता । प्रत्यक्षरूप से ॥३४॥
देह के अभाव से पूजा पाये ना । देह के बिना पूजा फले ना । जनों में जनार्दन इस कारण । संतुष्ट करें जनों को ॥३५॥
उदंड प्रकट हुआ विचार । धर्मस्थापना तद्नंतर । वहीं पूजा का अधिकार । पुण्यशरीर को ॥३६॥
सभीका भजन करे अगर । मूर्ख कहलाता शरीर । गधे की पूजा करने पर । उसे क्या समझता ॥३७॥
पूज्य को पूजा का अधिकार । व्यर्थ ही सतुष्ट करे इतर । न दुखाये किसी का अंतरंग । यही भला ॥३८॥
सकल जगदंतर का देव । क्षुब्ध हो तो रहने को कहां ठांव । जग से अलग जनों का उपाव । और नहीं ॥३९॥
परमेश्वर के अनंत गुण । मनुष्य क्या बताये पहचान । परंतु अध्यात्मग्रंथश्रवण । होने से समझे ॥४०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देहदुर्लभनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥

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Last Updated : December 09, 2023

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