प्राचीन कालकी बात है - काश्मीर देशमें हरिमेधा और सुमेधा नामके दो ब्राह्मण थे, जो सदा भगवान् विष्णुके भजनमें संलग्न रहते थे । भगवानमें उनकी अविचल भक्ति थी । उनके हदयमें सम्पूर्ण प्राणियोंके प्रति दया भरी हुई थी । वे सब तत्त्वोंका यथार्थ मर्म समझनेवाले थे । एक समय वे दोनों ब्राह्मण एक ही साथ तीर्थयात्राके लिये निकले । जाते - जाते किसी दुर्गम वनमें पहुँचकर वे बहुत थक गये । वहीं एक स्थानपर उन्होंने तुलसीका वन देखा । उनमेंसे सुमेधाने उस तुलसीवनकी परिक्रमा की और भक्तिपूर्वक प्रणाम किया । यह देख हरिमेधाने भी वैसा ही किया और सुमेधासे पूछा - ' ब्रह्मन् ! तुलसीका माहात्म्य क्या है ?' सुमेधाने कहा - ' महाभाग ! चलो, उस बरगदके नीचे चलें; उसकी छायामें बैठकर मैं सब बात बताऊँगा ।' यह कहकर सुमेधा वरगदकी छायामें जा बैठे और हरिमेधासे बोले - ' विप्रवर ! पूर्वकालमें जब समुद्रका मन्थन किया गया था, उस समय उससे अनेक प्रकारके दिव्य रत्न प्रकट हुए । अन्तमें धन्वन्तरिरुप भगवान् विष्णु अपने हाथमें अमृतका कलश लेकर प्रकट हुए । उस समय उनके नेत्रोंसे आनन्दाश्रुकी कुछ बूँदें उस अमृतके ऊपर गिरीं । उनसे तत्काल ही मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई । इस प्रकार समुद्रसे प्रकट हुई लक्ष्मी तथा अमृतसे उत्पन्न हुई तुलसीको सब देवताओंने श्रीहरिकी सेवामें समर्पित किया और भगवानने भी प्रसन्नतापूर्वक उन्हें ग्रहण किया । तबसे सम्पूर्ण देवता भगवत्प्रिया तुलसीकी श्रीविष्णुके समान ही पूजा करते हैं । भगवान् नारायण संसारके रक्षक हैं और तुलसी उनकी प्रियतमा हैं । इसलिये मैंने उन्हें प्रणाम किया ।'
सुमेधा इस प्रकार तुलसीकी महिमा बता ही रहे थे कि सूर्यके समान तेजस्वी एक दिव्य विमान उनके निकट आता दिखायी दिया । इसी समय वह बरगदका वृक्ष भी उखड़कर गिर गया । उससे दो दिव्य पुरुष निकले, जो अपने तेजसे सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित कर रहे थे । उन दोनोंने हरिमेधा और सुमेधाको प्रणाम किया और अपना परिचय देते हुए कहा - ' हम दोनों देवता हैं और अपने पूर्वपापके कारण ब्रह्मराक्षस होकर इस वटवृक्षपर निवास करते थे । आज आपके मुखसे यह भगवदविषयक चर्चा सुनकर तथा आप दोनों महात्माओंका सङ्ग पाकर हम दोनों इस पापयोनिसे मुक्त हो गये हैं और अब दिव्यधामको जा रहे हैं ।'
यों कहकर वे दोनों हरिमेधा और सुमेधाको बार - बार प्रणाम करके उनकी आज्ञा ले विमानद्वारा दिव्यलोकको चले गये । वास्तवमें भगवदभक्तोंके सङ्गका ऐसा ही माहात्म्य है ।