ये भी भगवानके अन्य परिकरोंची भाँति नित्यभुक्त एवं अखण्ड ज्ञानसम्पन्न माने जाते हैं । ये वेदोंके अधिष्ठातृदेवता एवं बेदात्मा कहे जाते हैं । अतएव इन्हें शास्त्रोंमें सर्वज्ञ भी कहा गया है । इनका भगवानके दास, सखा, वाहन, आसन, ध्वज, वितान एवं व्यजनके रुपमें वर्णन आता है । श्रुतिमें इन्हें ' सर्ववेदमयविग्रह ' कहा गया है । श्रीमद्भागवतमें एक जगह वर्णन आता है कि बृहद्रथ और रथन्तर नामक सामवेदके दो भेद ही इनके पंख हैं और उड़ते समय इन पंखोंसे सामागानकी ध्वनि निकलती है । ये भगवानके नित्य संगी हैं और सदा उनकी सेवामें रत रहते हैं । इनके सम्बन्धमें यह कहा जाता है कि इनकी पीळपर भगवानके चरण सदा स्थापित रहते हैं, जिससे इनके चमड़ेपर घट्ठा - सा पड़ गया है । यह परम सौभाग्य इन्हींको प्राप्त है । भगवानके उच्छिष्ट प्रसादको ग्रहण करनेका अधिकार भी इन्हींको मिला हुआ है । असुरादिके साथ अधिकार भी इन्हींको मिला हुआ है । असुरादिके साथ युद्धमें भगवान् इन्हें अपने सेनापतिका पद देकर अपना सारा भार इनपर छोड़ देते हैं; क्योंकि ये भगवानके अत्यन्त विश्वासपात्र सेवक हैं । भगवानके नित्य परिकर होनेपर भी इनका जन्म कश्यप और विनतासे हुआ था । अतएव ये ' वैनतेय ' कहलाते हैं । भगवानने गीतामें इन्हें अपनी विभूति बतलाया है । ये भगवानके नित्य परिकर होनेके नाते भक्तोंके सर्वस्व एवं महान् सहायक हैं । अष्टादशपुराणान्तर्गत गरुड़पुराण इन्हींके नामसे प्रसिद्ध है । भगवानकी कृपा एवं प्रेरणासे इन्होंने ही इस पुराणका कथन कश्यपजीके सामने किया था और उसीको फिर व्यासजीने सङ्कलन करके प्रसिद्ध किया ।