शैव भारत ही नहीं, आसेतु हिमाचलके विशाल भूमिभागमें शिवमहिम्नस्तोत्रकी जो प्रतिष्ठा है, जो पूज्य - भावना है, जो आदर - बुद्धि है, उससे सिद्ध होता है कि श्रीविष्णु और श्रीराम - कृष्णकी तरह ही भगवान् शिवका भी भारतीय मस्तिष्कपर पूर्ण प्रभाव रहता चला आया है । शिवमहिम्नस्तोत्र शिवविषयक साहित्यका अत्यन्त विशिष्ट और प्रधान अङ्ग है । इसके रचयिता परम शिवभक्त गन्धर्वराज पुष्पदन्त थे । शिवकी यश - भागीरथीमें उनकी पवित्र वाणीने अवगाहन कर शैव - जगतको जो रत्न प्रदान किये हैं, वे भक्ति - साहित्यकी श्रीवृद्धिमें सदा अमूल्य योग देते रहेंगे ।
गन्धर्वराज पुष्पदन्त प्रतिदिन प्रातःकाल ही एक राजाके उपवनसे ताजे पुष्प तोड़ लाया करते थे । राजा पुष्पोंको न पाकर मालियोंको कठोर दण्ड दिया करता था । मालियोंने बड़े - बड़े प्रयत्न किये, पर फूल ले जानेवालेका पता नहीं लगता था । वे सब इस निर्णयपर पहुँचे कि फूल ले जानेवाला उपवनमें आते ही किसी विशेष शक्तिकी कृपासे अदृश्य हो जाया करता है । सचिवोंने समस्याका समाधान निकाला; सर्वसम्मतिसे निश्चय हुआ कि ' उपवनके चारों ओर शिवनिर्माल्य फैला दिया जाय, शिव - निर्माल्यको लाँघते ही चोरकी अदृश्य होनेकी शक्ति क्षीण हो जायगी ।' ऐसा ही किया गया । गन्धर्वराजको निर्माल्यका उल्लङ्घन करते ही मालियोंने देख लिया । वे पकड़ लिये गये, कारागारमें डाल दिये गये ।
उन्हें जब यह पता चला कि ' मैंने शिव - निर्माल्य लाँथकर महान् अपराध किया है ' उन्होंने भगवान् आशुतोषको प्रतग्न करने और उनकी दया प्राप्त करनेका दृढ़ संकल्प किया । एक दीन - हीनकी तरह, असमर्थ और सर्वथा विवश होकर गन्धर्वराजने भगवान् शिका कारागारमें स्मरण किया । अपराध - मार्जनका एक मात्र उपाय शिवाराधन ही था । उन्होंने भगवान् शिवकी प्रसन्नताके लिये स्तोत्र रचा । आशुतोष भगवान् भोलेनाथकी तो गति न्यारी ही है, भक्तने सच्चे हदयसे पुकारा था, योगियोंकी अखण्ड समाधि, मुनियों और ध्यानी ज्ञानियोंकी तपस्याकी भी उपेक्षा कर देनेवाले शङ्कर भक्तकी पुकारपर दौड़ पड़े । कारागारमें दिव्य प्रकाश छा गया । गन्धर्वराजने देखा कि भगवान् शिवके मस्तकपर गङ्गा मुसकरा रही हैं, कण्ठ नीला है, गौर वर्णपर सपोंकी मालाएँ बड़ी सुन्दर लग रही हैं, गजकी खालसे प्रतिक्षण उनकी सुन्दरता बढ़ती जा रही है । लोक - लोकान्तरकी समस्त सम्पदा उनके चरणोंपर लोट रही है । भगवान् शिवके साक्षात्कारने उनकी भीषण तपस्याको सफल कर दिया, उनका अपराध मिट गया । उन्होंने अनेक प्रकारसे उनकी स्तुति की । चरण - धूलि मस्तकपर चढ़ाकर निवेदन किया -- ' भगवन् ! आपकी महिमाकी परमावधिको न जानते हुए यदि मेरी स्तुति अनुचित है तो सर्वज्ञ ब्रह्मा आदिकी वाणी भी तो पहले आपके यशःस्तवनमें थक चुकी है । ऐसी अवस्थामें स्तुति करनेवालेपर कोई दोष नहीं लगाया जा हो ।' भगवान् शङ्करने भक्तको अभयदान दिया । उनके जन्म - जन्मके बन्धन कट गये । दूसरे दिन राजाने कारागारमे स्वयं उपस्थित होकर उनके दर्शनसे अपने दिव्य दर्शनसे मुक्त कर दिया, उनको कारागारमें बंद रखनेका साहस दूसरा व्यक्ति भला, किस तरह कर सकना । राजाने उनसे अपने अपराधके लिये क्षमा माँगी ।
गन्धर्वराज पुष्पदन्तकी गणना महान् शिवभक्तोंमें की जाती हैं । उन्होंने प्रभासक्षेत्रमें पुष्पदन्तेश्वर शिवलिङ्गकी स्थापना की थी । उन्होंने शिवमहिग्नस्तोत्रके रुपमें जो साहित्य दान किया है, उससे असंख्य जीवोंका कल्याण हो रहा है । शिवमहिग्नस्तोत्रके साथ - ही - साथ परम भक्तप्रबर गन्धर्वराज पुष्पदन्तका भी नाम अभिट और अमर है ।