एक शहर में शुद्धपट नाम का धोबी रहता था । उसके पास एक गधा भी था । घास न मिलने से वह बहुत दुबला हो गया । धोबी ने तब एक उपाय सोचा । कुछ दिन पहले जंगल में घूमते-घूमते उसे एक मरा हुआ शेर मिला था, उसकी खाल उसके पास थी । उसने सोचा यह खाल गधे को ओढ़ा कर खेत में भेज दूंगा, जिससे खेत के रखवाले इसे शेर समझकर डरेंगे और इसे मार कर भगाने की कोशिश नहीं करेंगे ।
धोबी की चाल चल गई । हर रात वह गधे को शेर की खाल पहना कर खेत में भेज देता था । गधा भी रात भर खाने के बाद घर आ जाता था ।
लेकिन एक दिन यह पोल खुल गई । गधे ने एक गधी की आवाज सुन कर खुद भी अरड़ाना शुरु कर दिया । रखवाले शेर की खाल ओढ़े गधे पर टूट पड़े, और उसे इतना मारा कि बिचारा मर ही गया । उसकी वाचालता ने उसकी जान लेली ।
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बन्दर मगर को यह कहानी कह ही रहा था कि मगर के एक पड़ोसी ने वहाँ आकर मगर को यह खबर दी कि उसकी स्त्री भूखी-प्यासी बैठी उसके आने की राह देखती-देखती मर गई । मगरमच्छ़ यह सुन कर व्याकुल हो गया और बन्दर से बोला----"मित्र क्षमा करना, मैं तो अब स्त्री-वियोग से भी दुःखी हूं ।"
बन्दर ने हँसते हुए कहा----"यह तो मैं पहले ही जानता था कि तू स्त्री का दास है । अब उसका प्रमाण भी मिल
गया । मूर्ख ! ऐसी दुष्ट स्त्री की मृत्यु पर तो उत्सव मनाना चाहिये, दुःख नहीं । ऐसी स्त्रियाँ पुरुष के लिये विष समान होती हैं । बाहिर से वह जितनी अमृत समान मीठी लगती हैं, अन्दर से उतनी ही विष समान कड़वी होती हैं ।"
मगर ने कहा----"मित्र ! ऐसा ही होगा, किन्तु अब क्या करुँ ? मैं तो दोनों ओर से जाता रहा । उधर पत्नी का वियोग हुआ, घर उजड़ गया; इधर तेरे जैसा मित्र छूट गया । यह भी दैवसंयोग की बात है । मेरी अवस्था उस किसान-पत्नी की तरह हो गई है जो पति से भी छूटी और धन से भी वंचित कर दी गई थी ।"
बन्दर ने पूछा़----"वह कैसे ?"
तब मगर ने गीदड़ी और किसान-पत्नी की यह कथा सुनाई----