मदनगुपाल, सरन तेरी आयौ ।
चरनकमलकी सरन दीजिये, चेरौ करि राखौ घर जायौ ॥१॥
धनि-धनि-मात-पिता सुत-बंधू, धनि जननी जिन गोद खिलायौ ।
धनि-धनि चरन चलत तीरथकौं, धनि गुरुजन हरिनाम सुनायौ ॥२॥
जे नर बिमुख भये गोबिंदसों, जनम अनेक महादुख पायौ ।
श्रीभटके प्रभु दियौ अभय पद, जन डरप्यौ जब दास कहायौ ॥३॥