कृष्णपक्ष की एकादशी
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते है ।
भाद्रपद : कृष्ण पक्ष
कुन्ती पुत्र अर्जुन बोले - "हे जनार्दन ! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए ! उस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है ? उसका व्रत करने से क्या फल मिलता है ?"
श्री कृष्ण बोले - "हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं । इसके व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस दिन भक्तिपूर्वक भगवान् की पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्व में दूसरा कोई व्रत नहीं है । अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो -
प्राचीनकाल में आयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । उसका नाम हरिश्चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था । दैवयोग से उसने अपना राज्य स्वप्न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेच देना पड़ा । स्वयं वह एक चाण्डाल का सेवक बन गया । उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया । परन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य को न छोड़ा । जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा । वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करुं ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊं ?
एक समय की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे । राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःखभरी कथा सुनाने लगा । राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और राजा से बोले - ’हे राजन् ! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है । तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो । इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे ।’
गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर अन्तर्धान हो गये । अजा नाम की एकादशी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि-जागरण किया । उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गये । उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी । उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया । उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा । व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिला । वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था । किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्यंत्र समाप्त हो गया और अन्त समय में राजा हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया ।
हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस व्रत को विधिविधानपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग को जाते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है ।"
कथासार
प्राणी को ईश्वर के प्रति पूरी निष्ठा रखनी चाहिए । कठिन परिस्थितियों में भी जो सत्य का मार्ग नहीं छोड़ते वे स्वर्ग के अधिकारी होते हैं । सत्य की परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ही होती है, अतः ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हुए सत्य का पालन करना चाहिए ।
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Last Updated : December 15, 2013
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