हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|प्रकृतिपुरुष का| अजपानिरूपणनाम प्रकृतिपुरुष का समास पहला शिवशक्तिनिरूपणनाम श्रवणनिरूपणनाम अनुमाननिरसननाम अजपानिरूपणनाम देहात्मनिरूपणनाम जगज्जीवननिरूपणनाम तत्त्वनिरूपणनाम समास नववां- तनुचतुष्टयनाम टोणपसिद्धलक्षणनाम समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ इक्कीस सहस्र छह सौ जपा । नियुक्त कर गया वह अजपा । विचार देखो तो सुलभ इतना । सब कुछ ॥१॥ मुख में नासिका में रहता प्राण । उसका अखंड होता आवागमन । इस विचार का निरीक्षण । करें सूक्ष्म दृष्टि से ॥२॥ मूलतः देखो तो एक ही स्वर । उससे तार मंद्र घोर । उस घोर से भी सूक्ष्म विचार | अजपा का ॥३॥सारिगमपधनीस । समता मातृका सायास । प्रथम स्वर से उच्चार । करके देखे मातृकाओं का ॥४॥ परा वाचा की इस ओर । और पश्यंति के नीचे जाकर । स्वर का जन्मस्थान । वे उठते वहां से ॥५॥एकांत में यूं ही बैठें । वहां इसकी अनुभूति लें । अखंड लें और छोडें । प्रभंजन को ॥६॥ एकांत में मौन साध कर बैठें । सावधानी से देखो तो कैसे भासे । सोहं सोहं ऐसे । शब्द होते ॥७॥उच्चार के बिना जो शब्द । वे जानिये सहज शब्द । प्रत्यय को आते परंतु नाद । कुछ भी नहीं ॥८॥ वे शब्द त्याग जो बैठा । उसे मौनी कहें भला । सायास योगाभ्यास का । इस कारण ॥९॥ एकांत में मौन साधकर बैठा । वहां कौन सा शब्द प्रकटा । सोहं ऐसा भास हुआ । अंतर्याम में ॥१०॥ धरे तो सो छोड़े तो हं । अखंड चले सोहं सोहं । इसका विचार देखें तो बहुत । विस्तृत है ॥११॥ देहधारक जितने प्राणी । स्वेदजउद्भिजादि खाणि । श्वासोच्छ्वास न होते प्राणी । जियेंगे कैसे ॥१२॥ ऐसा यह अजपा है सब में । मगर केवल ज्ञाता उसे जाने । सहज त्यागकर सायासों के । पीछे न पड़ें ॥१३॥ सहज देव रहे ही रहे । सायास से देव फूटे मिटे । नाशवान देव में विश्वास रखे । ऐसा कौन ॥१४॥जगदंतर का दर्शन । सहज होता अखंड ध्यान । आत्मइच्छा से जन । सकल व्यवहार करते ॥१५॥आत्मा का समाधान । होता वैसा ही अशन । गिरा मिटा समर्पण । उसे ही होता ॥१६॥ अग्निपुरुष पेट में रहते । उसे अवदान सकल देते । लोग आज्ञा में रहते । आत्मा के ॥१७॥ सहज देवजपध्यान । सहज चलना स्तुति स्तवन । सहज होता उसे भगवान । मान्य करते ॥१८॥ सहज समझने के लिये । नाना हठयोग किये । परंतु एकाएक ज्ञान ये । होता नहीं ॥१९॥ द्रव्य चूकता दरिद्र पाता । तल में लक्ष्मी को बाहर खोजता । प्राणी क्या करेगा इसका । भरोसा नहीं ॥२०॥ तलघर में उदंड द्रव्य । दीवारों में रखा द्रव्य । स्तंभों मयालों में द्रव्य । बीच में स्वयं ॥२१॥ लक्ष्मी से घिरा अभागा । उसका दरिद्र अधिक दिखता । चमत्कार किया है ऐसा । परमानंद परमपुरुष ने ॥२२॥ एक देखे एक खाये । विवेक की गति ऐसे । प्रवृत्ति अथवा निवृति है । इसी न्याय से ॥२३॥ हृदयस्थ हो अगर नारायण । तो लक्ष्मी क्यो होगी कम । जिसकी लक्ष्मी वह स्वयं । दृढता से पकडे ॥२४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे अजपानिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP