जप-विधिका स्थान
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
स्थान-
भेदसे जपकी श्रेष्ठताका तारतम्य -- घरमें जप करनेसे एक गुना, गोशालामें सौ गुना, पुण्यमय वन या वाटिका तथा तीर्थमें हजार गुना, पर्वतपर दस हजार गुना, नदी-तटपर लाख गुना, देवालयमें करोड़ गुना तथा शिवलिन्गके निकट अनन्त गुना पुण्य प्राप्त होता है --
गृहे चैकगुण: प्रोक्त: गोष्ठे शतगुण: स्मृत: ।
पुण्यारण्ये तथा तीर्थे सहस्त्रगुणमुच्यते ॥
अयुत: पर्वते पुण्यं नद्यां लक्षगुणो जप: ।
कोटिर्देवालये प्राप्ते अनन्तं शिवसंनिधौ ॥
N/A
References : N/A
Last Updated : November 26, 2018

TOP