स्नानकी विधि

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


स्नानकी विधि -- उषाकी लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है । इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होत है । तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है । अत: नदीसे बाहर तटपर ही देह-हाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोतो लगाये । शास्त्रोंने इसे 'मलापकर्पण' स्नान कहा है । यह अमन्त्रक होता है । यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है । देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोके न खुलनेसे स्वास्थ्यमें भी अवरोध हो जाता है । इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अन्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये । निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर ले ।
इसके बाद शिखा बाँधकर दोनों हाथोंमे पवित्रियाँ पहनकर आचमन आदिसे शुध्द होकर दाहिने हाथमें जल लेकर संकल्प करे --
 
अद्य .......गोत्रोत्पन्न: शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम्, श्रुतिस्मृति-पुराणोक्तफलप्राप्तिपूर्वकं श्रीभगवत्प्रीत्यर्थ च प्रात: (मध्याह्ने, सायं) स्नानं करिष्ये ।'
संकल्पके पश्चात् निन्मलिखित मन्त्र पढ़्कर सभी अन्गोंमें मिट्टी लगाये --

अश्वक्रान्ते ! रथक्रान्ते ! विष्णुकान्ते वसुन्धरे !
मृत्तिके ! हर मे पापं यन्मया दुष्कृतं कृतम् ॥

इसके पश्चात् गंगाजीकी उन उक्तियोंको बोले, जिनमें उन्होंने कह रखा है कि स्नानके समय मेरा जहाँ-कहां कोई स्मरण करेगा, वहाँके जलमें मै आ जाऊंगी --

नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी ॥
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी ।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशये ॥
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम् ॥

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Last Updated : November 25, 2018

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