मिश्रितप्रकरणम्‌ - श्लोक ६४ ते ११२

अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


अथ पल्लीसरटयो : पतनारोहणम्‌ । पल्लीस्पर्शफलं वक्ष्ये यदुक्तं ब्रह्मणा पुरा । ब्रह्मस्थाने भवेद्राज्यं स्थानलाभो ललाटके ॥६४॥

कर्णयोर्भूषणावाप्तिर्नेत्रयो : प्रियदर्शनम्‌ । नासिकायां सुगंधीनि मुखे मिष्टान्नभोजनम्‌ ॥६५॥

कपोलयोर्भवेत्सौख्यं हनुदेशे महद्भयम्‌ ॥ भ्रुकुटयां विग्रहश्वैव कंठे च व्यसनागम : ॥६६॥

कलिर्वशे सुखं पृष्ठे दक्षे वामे गदादय : । दक्षांसे विजयो नित्यं वामांसे शत्रुजं भयम्‌ ॥६७॥

इष्टलाभो भुजे सव्ये कूर्परे मणिबंधके । दक्षे करतले द्रव्यं तत्पृष्ठे सद्वययो भवेत्‌ ॥६८॥

वामे भुजे कूर्परे च मणिबंधे धनक्षय : । वामे करतले हानिस्तत्पृष्टे चार्थनाशनम्‌ ॥६९॥

ह्रदये राजसम्मानं सौभाग्यं दक्षिणे स्तने । दक्षपार्श्वे च भोगाप्ति : स्तने वामे यशो धनम्‌ ॥७०॥

वामपार्श्वे भवेत्पीडा वामकुक्षौ शिशोस्तथा । दक्षकुक्षौ सुतावाप्तिरुदरे च विशेषत : ॥७१॥

वस्त्राप्तिर्दक्षकटयां च वामकटयां सुखक्षय : । नाश्र्यां मनोरथावाप्तिर्वस्तौ गर्भच्युतिर्भबेत्‌ ॥७२॥

गुह्ये मृत्युर्गुदे रोगो दक्षोरौ प्रीतिवर्द्धनम्‌ । वामोरौ मृत्युतो दुःखं दक्षजानौ सुवाहनम्‌ ॥७३॥

पशुहानिर्वामजानौ दक्षिणे जघने सुखम्‌ । क्लेश : स्याद्वामजंघायां स्फिचि दक्षेऽर्थवृद्धिकृत ॥७४॥

स्फिचि वामें स्त्रीवियोगो दक्षे गुल्फे प्रियागम : । उपप्लवो वामगुल्फे पादयोर्गमनं भवेत्‌ ॥७५॥

पुरोभागे च दुर्वार्ता नष्टवार्त्ता च पृष्ठत : । बामे हानिर्धनं दक्षे परितो ध्रमणेक्षित : ॥७६॥

वामदक्षिणभागेन यत्फलं कथितं नृणाम्‌ । विपर्ययेण तत्स्त्रीणां ज्ञेयं शेषं द्वयो : समम्‌ ॥७७॥

इत्थं पल्ल्या : प्रपतने फलं ज्ञेयं विचक्षणै : । एतदेव फलं विद्यात्सरटस्य प्ररोहणे ॥७८॥

मृत्युयोगे च जन्मक्षें विष्टयां पाते च वैधृतौ । चंद्रेऽष्टमे च सक्रूरे लग्ने विघ्न : प्रजायते ॥७९॥

अंगं दक्षिणमारुह्य वामेनोत्तरते स्फुटम्‌ । तदा हानिकरी ज्ञेया व्यत्ययेन तु हानिदा ॥८०॥

चरणाद्‌र्घ्वगा भूय : सद्यो रोहति शीर्षकम्‌ । प्राप्तं राज्यं तदा दत्ते पल्ली श्वेता विशेषत : ॥८१॥

चिंतिताश्र्यधिकं लांभ स्थिता भोजनभाजने । पांदांगुलीषु संपाताद्धानिश्व महती भवेत्‌ ॥८२॥

तत्र शांतिं जपं होमं रुद्रं मृत्युंजयादिकम्‌ । पंचगव्ययुतं स्नानं कुर्यादान्यावलोकनम्‌ ॥८३॥

तिलमाषादिदानं च सात्वा देयं द्विजन्मने । पिनाकिनं नमस्कृत्य जपे स्मंत्रं पठक्षरम्‌ ॥८४॥

शतं सहस्रमथवा सर्वदोषनिबर्हणम्‌ । शिवालये प्रदद्याद्वै दीपं दोषोपशांतये ॥८५॥

अथ छिपकली पडनेका तथा किरडे ( किरकांट ) का अंगपर चढनेका फल लिखते हैं - जैसा पूर्व ब्रह्माजीने कहा है । शिरके ऊपर ब्रह्मरंध्रम छिपकली पडे तो राज्यका लाभ हो , ललाटपर पडे ता स्थान मिले ॥६४॥

कानपर पडे तो आमूषण मिले , नेत्रोंपर पडे तो प्रिय वस्तुका दर्शन हो , नाशिकापर पडे तो सुगंधि प्राप्त हो , मुखपर पडे तो मिष्टान्नका भोजन मिले ॥६५॥

गालोंपर सुख हो , ठोडीपर महान्‌ भय हो , ब्रुकुटीपर राड ( कलह ) हो , कंठपर पडे तो दुःख हो ॥६६॥

पीठके हाथपर पडे तो कलह हो , दक्षिण पीठपर सुख हो , वामपीठपर रोग हो , दहने कन्धेपर पडे तो विजय हो , वामकन्धे पर शत्रुका भय हो ॥६७॥

दक्षिणभुजापर , तथा कूर्परपर मणिबंधपर पडे तो इष्टवस्तुका लाभ हो , दक्षिण हाथकी हथेलीपर द्रव्य मिले , दाहने हाथको पीठपर पुण्यके निमित्त खरच हो ॥६८॥

वामभुजा , कूर्पर , मणिबंधपर पडे तो धन नाश हो , वामहाथकी हथेलीपर पडे तो हानि और उसकी पीठपर पडे तो धनका नाश हो ॥६९॥

हृदयपर राजासे सन्मान मिले , दहिने स्तनपर सौभाग्य और दक्षिण पार्श्वमें भोग तथा वामस्तनपर पडे तो यश धन मिले ॥७०॥

वामपार्श्वमें पडे तो पीडा करे , वामकूखपर पडे तो बालकोंको पीडा करे , दक्षिणकूखपर , या पेटपर पडे तो पुत्र हो ॥७१॥

दक्षिण कड ( कटि ) पर वस्त्रका लाभ , वामकडपर सुखका नाश हो , नाभिपर मनोरथसिद्धि और बसिस्थान अर्थात्‌ नाभी के नीचे पडे तो गर्भपतन हो जावे ॥७२॥

गुह्यपर मृत्यु गुदापर पडे तो रोग हो , दक्षिणजंघापर प्रीतिकी वृद्धि और वामजंघापर मृत्युका दुःख दक्षिण गोडपर पडे तो श्रेष्ठ वाहन मिले ॥७३॥

वामगोडपर पशुहानि , दक्षिणपींडीपर सुख , वामपींडीपर क्लेश हो , दक्षिणकूल्लेपर धनकी वृद्धि हो ॥७४॥

वामकूल्लेमें स्त्रीका वियोग , दक्षिणटकणेपर प्रियका आगमन , वामटकणेपर नाश , और पगोंपर पडे तो गमन करावे ॥७५॥

अगाडी आके पडे तो खोटीबात सुने , पछाडी पडे तो नष्ट होनेकी वार्ता सुने , वामपार्श्वमें पडे तो हानि और दक्षिणपार्श्वमें पडे तो धनलाभ और आकर फिर जावे तो नाश करे ॥७६॥

यह छिपकलीका कहा हुआ फल पुरुषोंके दक्षिणभागका और स्त्रियोंके वामभागका शुभ जानना और विपरीत पडनेसे अर्थात्‌ पुरुषोंके वाम अंगोंमें और स्त्रियोंके दक्षिण अंगोंमें अशुभ जानना ॥७७॥

इस प्रकार छिपकलीके पडनेका और किरडेके चढनेका फल जानना चाहिये ॥७८॥

यदि मृत्युयोग , जन्म नक्षत्र , भद्रा , व्यतीपात , वैधृति , आठवां चन्द्रमा पापग्रह सहित लग्नमें पडे तो विघ्न होता है ॥७९॥

दक्षिण अंगपर चढके यदि वाम अंगोंकरके उतरजावे तो हानि करती है और वाम अंगसे दक्षिणकरके उतरे तो श्रेष्ठ है ॥८०॥

यदि पगोंसे चढके शिरपर जा चढे तो राज्यप्राति करती है ॥८१॥

भोजन पात्रपर पडे तो विचारे हुए लाभसे अधिक भी लाभ हो और पगोंकी अंगुलियोंपर पडे तो बहुत हानि हो ॥८२॥

यदि दुष्ट स्थान - पर छिपकली पड जावे तो , शांति , होम , जप , रुद्रीका पाठ , महामृत्युंजयजप करे और पंचगव्यसे स्नान करके घृतम मुख देखे ॥८३॥

तिल , उडदका दान स्नान करके ब्राह्मणको दे , महादेवजीको नमस्कार करे " ॐ नम : शिवाय " इस मंत्रका हजार या सौ जप करे और शिवालयमें दीपक दे तो दोष दूर होजावे ॥८४॥८५॥

इति पल्लीपतनफलम्‌ ॥

अथ स्वप्नदर्शनफलम्‌ । आद्ये यामे निशि स्वप्नो वर्षेण फलदो भवेत्‌ । द्वितीये मासषटकेन त्रिभिर्मासैस्तृतीयके ॥८६॥

प्रात : सद्य : फल : स्वप्नस्तत : स्वप्यान्न चेन्नर : । रोगचिंतोद्भवा ह्यर्थाश्विरपाकादि वीक्षताम्‌ ॥८७॥

अथ शुभदा : स्वप्ना : । सद्राजा ब्राह्मणा देवा : सिद्धगंधर्व किन्नरा : । गुरु : श्वेतांबरा नारी तेषामाशीश्व दर्शनम्‌ ॥८८॥

प्रासादगजशैलानां श्वेतोक्षासनवाजिनाम्‌ । दर्शनं रोहणं लाभ : सिंहस्यारोहणं तथा ॥८९॥

छत्रघ्वजसुवर्णाब्जरत्नरौप्यदधीनि च । यवगोधूमसिद्धार्था : फलं दीपश्व कन्यका : ॥९०॥

श्रीखंडाक्षतदूवक्षुदर्पणा : पुष्पितद्रुमा : । लाभे वा दर्शने चैषां लाभ : साख्यं भवेद्यश : ॥९१॥

भोजनं रोदनं वीणावादनं नौप्ररोहणम्‌ । अगम्यागनं विष्ठालेपनं शस्तमीरितम्‌ ॥९२॥

आरूढो यो हि जागर्ति सपुष्पं फलिंत द्रुमम्‌ । दष्ट : श्वेताहिना दक्षे करे स्यात्स महाधन : ॥९३॥

रुधिरस्नानपानं च सर्पदंशो मृतिर्निजा । शय्याहर्म्यासनानां च ज्वलनं सशिरश्छिदा ॥९४॥

रक्तस्त्रावो जलै : स्नानं मरणं मांसभक्षणम्‌ । सुराया : पयस : पानं प्रशस्तं पायसाशनम्‌ ॥९५॥

कदलीकल्पवृक्षाश्व तीर्थं गंगादिकं सरित्‌ । तोरणं भूषणं राज्यं स्वनैश्व ग्रामवेष्टनम्‌ ॥९६॥

वेदवाद्यादिनिर्घोषो गर्तान्नि : सरणं तथा । देशो वृश्विककीटानां तडागोद्यानदर्शनम्‌ ॥९७॥

पीतं रक्तं फलं पुष्पं स्वप्ने प्राप्नोति यो नर : । लभते सोऽचिरात्स्वर्ण पद्मरागमणिं तथा ॥९८॥

जयो द्यूते रणे वादे पुरुहूतघ्वजेक्षणम्‌ । आत्मनो बंधनं शीर्ष बाह्नोरानंत्यमुत्तमम्‌ ॥९९॥

अभिषेककरो विप्रो देवो वा छत्रधारणम्‌ । कुरुते महिषीव्याघ्रीगोसिंहीस्तन्यपानकम्‌ ॥१००॥

स्वनाभौ तृणवृक्षांबुपुष्पाणामुद्भवस्तथा । भुवो भूमिधरस्यापि क्रमेणोत्क्षेपणे शुभे ॥१०१॥

मणिसौवर्णरौप्याणां पात्रे वांऽभोजिनीदले । योऽश्नाति पायसं स्वप्ने स राज्यमधिगच्छति ॥१०२॥

गौर्लिंगी ब्राह्मणो राजा पिता मित्रं च देवता । यद्वदेतत्सदसत्‌स्वप्ने तत्तथैव प्रजायते ॥१०३॥

पूजिंत शिवलिंगं च देवता वा यथाविधि । स्वप्ने द्दष्टा : प्रयच्छंति नराणां विपुलंधनम् ॥१०४॥

त्यक्त्वा तक्राणि कार्पासं श्वेतवर्णं शुभं मतम्‌ । सर्वं कृष्णमसद्धित्वा गोदेवांश्व गजद्विजान्‌ ॥१०५॥

यस्तु श्वेतेन सपेंण दंशितो दक्षिणे करे । सहस्रलाभस्तस्य स्यात्पूर्णे तु दशमे दिने ॥१०६॥

उरगो वृश्विको वाऽपि जंबूको दंशते यदि । विजयं चार्थसिद्धिं च पुत्रं तस्य विनिर्दिशेत्‌ ॥१८७॥

रुधिंर पिबति स्वप्ने सुरां वा पिबति क्वचित्‌ । बाह्मणो लभते विद्यामितरस्तु धनं लभेत्‌ ॥१०८॥

क्षीरं पिबति य : स्वप्ने सफेनं दोहने कृते । सोमपानं भवेत्तस्य धनं वा बहु चादिशेत्‌ ॥१०९॥

दधिलाभे धनं तस्य घृतलाभे ध्रुवं यश : । घृतप्राशे महाक्लेशो यशस्तु दधिभक्षणे ॥११०॥

गोधूमैर्वा यवैर्वापि लाभं सिद्धार्थकेषु च । पुष्ये प्राप्ते धनं विद्यात्फले वृद्धिरनुत्तमा ॥१११॥

आसने शयने याने शरीर वाहने गृहे । ज्वलमाने विबुघ्येत तस्य श्री : सर्वतोमुखी ॥११२॥

( अथ स्वप्नफलम्‌ । यदि स्वप्न रात्रिके प्रथम पहरमें आवे तो बरसभरसे फल दे और दूसरे पहरमें छ : महीनोंसे . तीसरे पहरमें तीनमाससे फल होता है ॥८६॥

प्रात : कालका स्वप्न तत्‌काल ही फल देता है , परन्तु यदि फिर नहीं सोवे तो रोग , चिन्ता , धनलाभ आदिका कार्य बहुत दिनसे सिद्व होनेवालोंका शीघ्र सिद्ध होवे ॥८७॥

( श्रेष्ठस्वप्न ) श्रेष्ठराजा , ब्राह्मण , देव , गन्धर्व , सिद्ध , किन्नर , गुरु , श्वे वस्त्रयुक्त स्त्री इनका दर्शन तथा आशीष श्रेष्ठ है ॥८८॥

महल , मन्दिर , पर्वत , सुफेद वृषभ , आसन , घोडे , सिंह आदिका दर्शन तथा चढना , या मिलना श्रेष्ठ है ॥८९॥

छत्र , ध्वजा , सुवर्ण , कमल , रत्न , चांदी , दही , यव , गेहूँ , सरसों , फल , दीपक , कन्या , चन्दन , चावल , दूर्वा , ईख दर्षण , पुष्पों करके युक्त दरखा , इनका दर्शन , या लाभ हो तो लाभ , मुख प्राप्त होवे ॥९०॥९१॥

भोजन , स्दन , वीणाका बजाना , नौकाका चढना , नहीं गमन करने योग्य स्त्रीका संग करना , शरीरमें विष्ठा लगाना श्रेष्ठ है ॥९२॥

पुष्पफलसहित वृक्षपर चढके जागे और दक्षिणहाथमें सुफेद सर्प काट जावे तो बहुत धन मिले ॥९३॥

रुधिरसे स्नान , पान करे , या सर्प खाजावे , या आप मरजावे , या शय्या , महल , आसन यह अग्निसे जलजावे , या अपना शिर कटजावे ॥९४॥

खून निकल आवे , जलसे स्नान करे , या मरजावे , मांस भक्षण करे , मदिरा पीवे , या पायस दुग्ध पीवे तो शुभ है ॥९५॥

केलेला वृक्ष , कल्पवृक्ष , तीर्थ , गंगाआदि नदी , तोरण , आभूषण , राज्य , शब्दोंकरके ग्रामका वेष्टन ॥९६॥

वेद , बाजे आदिका शब्द , खाडेसे निकलना , वृश्विक , डांस , कीडे आदिका काटना , तालाब , बगीचा इनका देखना शुभ है ॥९७॥

पीला लाल फल पुष्प स्वप्नमें मिले तो थोडे ही दिनांसे सुवर्ण , रत्नमणि प्राप्त हो ॥९८॥

जूए या रण या वादमें जीतना , इंद्रकी ध्वजा देखना और अपने शरीर शिर बाहुका बंधन देखे तो शुभ अहि ॥९९॥

राजाका अभिषेकमें विप्र , देवताओंका छत्रधारण देखे , महिषी , व्याघ्री , गौ , सिंहिणीका स्तन पीवे तो शुभ है ॥१००॥

आपकी नाभिमें तृण , वृक्ष , जल , पुष्प निकले , शेष भगवान्‌ पृथ्वीको उछाले तो शुभ है ॥१०१॥

मणि , सुवर्ण , चांदीके पात्रोंमें , कमलके पत्तेमें पायस भक्षण करे तो राज्य मिलता है ॥१०२॥

गौ , संन्यासी , ब्राह्मण , राजा , पितर , पिता , मित्र , देवता जो स्वप्नमें शुभ अशुभ वार्त्ता कहे सो सच्ची जानना ॥१०३॥

यदि स्वप्नमें पूजित महादेवके लिंगको या पूजे हुए देवताओंको देखे तो बहुत धन मिलता है ॥१०४॥

केवल तक्र , कपासके विना संपूर्ण जिनस सुफेद श्रेष्ठ हैं और गौ , देवता , हस्ती , ब्राह्मणके विना कृष्ण जिनस संपूर्ण निषिद्ध है ॥१०५॥

जो स्वप्नमें दाहिने हाथको सुफेद सर्प काट खावे तो दशदिनके भीतर हजार रूपैया मिलता है ॥१०६॥

सपं , वृश्चिक , जंबुक , स्वप्नमें खावे तो विजय , धनलाभ , पुत्रलाभ होता है ॥१०७॥

स्वप्नमें रुधिर , मदिरा पीवे तो ब्राह्मणको विद्या आवे , औरोंको धन मिले ॥१०८॥

स्वप्नमें दूहते हुए झागसहित दुग्ध पीवे तो अमृतके पानबरोबर समझना और बहुत धन मिलता है ॥१०९॥

दधि मिले तो धनप्राप्ति , घृत मिले तो यशप्राप्ति हो और घृत खानेमें महाक्लशे और दही खानेमें यश मिलता है ॥११०॥

स्वप्नमें गोधूम , यव , सरसों , पुष्प मिलें तो धन हो और फल मिले तो उत्तम वृद्धि हो ॥१११॥

आसन , शय्या , यान , शरीर वाहन , घर अग्निसे जलते हुए देख जाग आवे तो सम्मुख लक्ष्मी आती है ॥११२॥

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Last Updated : November 11, 2016

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