समाज का शिकार

साहित्य के नोबल पुरस्कार से सम्मानित गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने अस्सी साल के जीवन में विपुल साहित्य की रचना की।


मैं जिस युग का वर्णन कर रहा हूं उसका न आदि है न अंत!
वह एक बादशाह का बेटा था और उसका महलों में लालन-पालन हुआ था, किन्तु उसे किसी के शासन में रहना स्वीकार न था। इसलिए उसने राजमहलों को तिलांजलि देकर जंगलों की राह ली। उस समय देशभर में सात शासक थे। वह सातों शासकों के शासन से बाहर निकल गया और ऐसे स्थान पर पहुंचा जहां किसी का राज्य न था।
आखिर शाहजादे ने देश को क्यों छोड़ा?
इसका कारण स्पष्ट है कि कुएं का पानी अपनी गहराई पर सन्तुष्ट है। नदी का जल तटों की जंजीरों में जकड़ा हुआ है, किन्तु जो पानी पहाड़ की चोटी पर है उसे हमारे सिरों पर मंडराने वाले बादलों में बन्दी नहीं बनाया जा सकता।
शाहजादा भी ऊंचाई पर था और यह कल्पना भी न की जा सकती थी कि वह इतना विलासी जीवन छोड़कर जंगलों, पहाड़ों और मैदानों में दृढ़ता से सामना करेगा। इस पर भी बहादुर शाहजादा भयावने जंगल को देखकर भयभीत न हुआ। उसकी राह में सात समुद्र थे और न जाने कितनी नदियां? किन्तु उसने सबको अपने साहस से पार कर लिया।
मनुष्य शिशु से युवा होता है और युवा से वृध्द होकर मर जाता है, और फिर शिशु बनकर संसार में आता है। वह इस कहानी को अपने माता-पिता से अनेक बार सुनता है कि भयानक समुद्र के किनारे एक किला है। उसमें एक शहजादी बन्दी है, जिसे मुक्त कराने के लिए एक शाहजादा जाता है।
कहानी सुनने के पश्चात् वह चिंतन की मुद्रा में कपोलों पर हाथ रखकर सोचता कि कहीं मैं ही तो वह शाहजादा नहीं हूं।
जिन्नों के द्वीप की दशा सुनकर उसके हृदय में विचार उत्पन्न हुआ कि मुझे एक दिन शहजादी को बन्दीगृह से मुक्ति दिलाने के लिए उस द्वीप को प्रस्थान करना पड़ेगा। संसार वाले मान-सम्मान चाहते हैं, धन-ऐश्वर्य के इच्छुक रहते हैं, प्रसिध्दि के लिए मरते हैं, भोग-विलास की खोज में लगे रहते हैं, किन्तु स्वाभिमानी शाहजादा सुख-चैन का जीवन छोड़कर अभागी शहजादी को जिन्नों के भयानक बन्दीगृह से मुक्ति दिलाने के लिए भयानक द्वीप का पर्यटन करता है।

2
भयानक तूफानी सागर के सम्मुख शाहजादे ने अपने थके हुए घोड़े को रोका; किन्तु पृथ्वी पर उतरना था कि सहसा दृश्य बदल गया और शाहजादे ने आश्चर्यचकित दृष्टि से देखा कि समाने एक बहुत बड़ा नगर बसा हुआ है। ट्राम चल रही है, मोटरें दौड़ रही हैं, दुकानों के सामने खरीददारों की और दफ्तरों के सामने क्लर्कों की भीड़ है। फैशन के मतवाले चमकीले वस्त्रों से सुसज्जित चहुंओर घूम-फिर रहे हैं। शाहजादे की यह दशा कि पुराने कुर्ते में बटन भी लगे हुए नहीं। वस्त्र मैले, जूता फट गया, हरेक व्यक्ति उसे घृणा की दृष्टि से देखता है किन्तु उसे चिन्ता नहीं। उसके सामने एक ही उद्देश्य है और वह अपनी धुन में मग्न है।
अब वह नहीं जानता कि शहजादी कहां है?
वह एक अभागे पिता की अभागी बेटी है। धर्म के ठेकेदारों ने उसे समाज की मोटी जंजीरों में जकड़कर छोटी अंधेरी कोठरी के द्वीप में बन्दी बना दिया है। चहुंओर पुराने रीति-रिवाज और रूढ़ियों के समुद्र घेरा डाले हुए हैं।
क्योंकि उसका पिता निर्धन था और वह अपने होने वाले दामाद को लड़की के साथ अमूल्य धन-संपत्ति न दे सकता था। इसलिए किसी सज्जन खानदान का कोई शिक्षित युवक उसके साथ विवाह करने पर सहमत न होता था।
लड़की की आयु अधिक हो गई। वह रात-दिन देवताओं की पूजा-अर्चना में लीन रहती थी। उसके पिता का स्वर्गवास हो गया और वह अपने चाचा के पास चली गई।
चाचा के पास नकद रुपया भी था और काफी मकान आदि भी। अब उसे सेवा के लिए मुफ्त की सेविका मिल गई। वह सवेरे से रात के बारह बजे तक घर के काम-काज में लगी रहती।
बिगड़ी दशा का शाहजादा उस लड़की के पड़ोस में रहने लगा। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। प्रेम की जंजीरों ने उनके हृदयों से विवाह कर दिया। लड़की जो अब तक पैरों से कुचली हुई कोमल कली की भांति थी उसने प्रथम बार संतोष और शांति की सांस लिया।
किन्तु धर्म के ठेकेदार यह किस प्रकार सहन कर सकते थे कि कोई दुखित स्त्री लोहे की जंजीरों से छुटकारा पाकर सुख का जीवन व्यतीत कर सके।
उसका विवाह क्या हुआ एक प्रलय उपस्थित हो गई। प्रत्येक दिशा में शोर मचा कि 'धर्म संकट में है, 'धर्म संकट में है।'
चाचा ने मूछों पर ताव देकर कहा- ''चाहे मेरी सम्पूर्ण संपत्ति नष्ट ही क्यों न हो जाये, अपने कुल के रीति-रिवाजों की रक्षा करूंगा।''
बिरादरी वाले कहने लगे- ''एक समाज की सुरक्षा हेतु लाखों रुपया बलिदान कर देंगे'', और एक धर्म के पुजारी सेठ ने कहा-''भाई कलयुग है, कलियुग। यदि हम अचेत रहे तो धर्म विलय हो जायेगा। आप सब महानुभाव रुपये-पैसे की चिन्ता न करें, यदि यह मेरा महान कोष धर्म के काम न आया, तो फिर किस काम आयेगा? तुम तुरन्त इस पापी चांडाल के विरुध्द अभियोग आरम्भ करो।''
अभियोगी न्यायालय में उपस्थित हुआ। अभियोगी की ओर से बड़े-बड़े वकील अपने गाऊन फड़काते हुए न्यायालय पहुंचे। अभागी लड़की के विवाह के लिए तो कोई एक पैसा भी खर्च करना न चाहता था, किन्तु उसे और उसके पति को जेल भिजवाने के लिए रुपयों की थैलियां खुल गईं।
नौजवान अपराधी ने चकित नेत्रों से देखा।
विधान की किताबों को चाटने वाली दीमकें दिन को रात और रात को दिन कर रही थीं।
धर्म के ठेकेदारों ने देवी-देवताओं की मन्नत मानी। किसी के नाम पर बकरे बलिदान किये गये, किसी के नाम पर सोने का तख्त चढ़ाया गया। अभियोग की क्रिया तीव्र गति से आरम्भ हुई। बिगड़ी हुई दशा वाले शाहजादे की ओर से न कोई रुपया व्यय करने वाला था न कोई पक्ष-समर्थन करने वाला।
न्यायाधीश ने उसे कठिन कारावास का दण्ड दिया।
मन्दिरों में प्रसन्नता के घंटे-घड़ियाल बजाये गये, सम्पूर्ण शक्ति से शंख बजाये गये, देवी और देवताओं के नाम बलि दी गई, पुजारियों और महन्तों की बन आई। सब आदमी खुशी से परस्पर धन्यवाद और साधुवाद देकर कहने लगे-
''भाइयो! यह समय कलियुग का है परन्तु ईश्वर की कृपा से धर्म अभी जीवित है।''

3
शाहजादा अपनी सजा काटकर कारावास से वापिस आ गया किन्तु उसका लम्बा-चौड़ा पर्यटन अभी समाप्त न हुआ था। वह संसार में अकेला था, कोई भी उसका संगी-साथी नहीं। संसार वाले उसे दंडी (सजायाफ्ता) कहकर उसकी छाया से भी बचते हैं।
सत्य है इस संसार में राज-नियम भी ईश्वर है।
फिर ईश्वर के अपराधी से सीधे मुंह बात करना किसे सहन हो सकता है?
लम्बी-चौड़ी मुसाफिरी तो उसकी समाप्त न हुई; किन्तु उसके चलने का अन्त हो गया। उसके जख्मी पांवों में चलने की शक्ति शेष न रही।
वह थककर गिर पड़ा, रोगी था...बहुत अधिक रोगी। उस असहाय पथिक की सेवा-सुश्रूषा कौन करता?
किन्तु उसकी अवस्था पर एक सुहृदय देवता का हृदय दुखा। उसका नाम 'काल' था। उसने शाहजादे की सेवा-सुश्रूषा की। उसने सिर पर स्नेह से हाथ फेरा और उसके साथ शाहजादा उस संसार में पहुंच गया जहां न समाज है और न उसके अन्याय और न अन्यायी।
बच्चा आश्चर्य से अपनी मां की गोद में यह कहानी सुनता है और अपने फूल-से कोमल कपोलों पर हाथ रखकर सोचता है, कहीं वह शाहजादा मैं ही तो नहीं हूं।

N/A

References : N/A
Last Updated : January 22, 2014

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP