धनत्रयोदशी - पूजन-विधि

दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है ।  


धनत्रयोदशी के दिन मध्याह्न काल में भगवान् धन्वन्तरि का पूजन किया जाना चाहिए । इसे न केवल आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़े हुए व्यक्तियों को ही करना चाहिए , वरन् आरोग्य प्राप्ति के निमित्त सभी व्यक्तियों को करना चाहिऐ । जिन व्यक्तियों की शारीरिक एवं मानसिक बीमारियॉं आए दिन पीड़ित करती रहती है , उन्हें तो आरोग्य देवता एवं देव -चिकित्सक भगवान् धन्वन्तरि का धनत्रयोदशी को श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए और उनसे इन कष्टों के निवारण तथा आरोग्य की प्राप्ति की प्रार्थना करनी चाहिए ।

सर्वप्रथम भगवान् धन्वन्तरि का चित्र चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर स्थापित करें । साथ ही भगवान् गणपति की स्थापना धन्वन्तरि के समक्ष अक्षत से बने हुए स्वस्तिक या अष्टदल के केन्द्र में सुपारी पर मौली लपेटकर करें ।

सर्वप्रथम अपनें ऊपर तथा पूजन सामग्री पर जल छिड़ककर पवित्र करे । तदुपरान्त भगवान् गणपति का पूजन करें । उनके समक्ष अर्घ्य , आचमन एवं स्नान हेतु थोड़ा -सा जल छोड़ें । तदुपरान्त रोली का टीका लगाएँ । अक्षता लगाएँ । वस्त्र के रूप में मौली का एक टुकड़ा चढ़ाएँ । पुष्प चढ़ाएँ । नैवेद्य चढ़ाएँ और अन्त में नमस्कार करें ।

अब प्रधान देवता के रूप में भगवान् धन्वन्तरि का पूजन करना है । इसके लिए सर्वप्रथम हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर अग्रलिखित श्लोक से भगवान् धन्वन्तरि का ध्यान करें :

देवान् कृशानसुरसंघनिपीडिताङ्गान्

दृष्ट्वा दयालुरमृतं विपरीतुकामः ।

पाथोधिमन्थनविधौ प्रकटोऽभवद्यो धन्वन्तरिः स भगवानवतात् सदा नः ॥

ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ धन्वन्तरिदेवाय नमः ।

ऐसा कहते हुए भगवान धन्वन्तरि के समक्ष अक्षत -पुष्प छोड़ दें । इसके पश्चात् धन्वन्तरि जी का पूजन प्रारम्भ करें ।

तीन बार जल के छीटे दें और बोलें :

पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं समर्पयामि ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । स्नानार्थे जलं समर्पयामि ।

स्नान के लिए जल के छीटें दें ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । पंचामृतस्नानार्थे पंचामृतं समर्पयामि । पंचामृत से स्नान कराएँ ।

पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । शुद्ध जल से स्नान कराएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । सुवासितं इत्रं समर्पयामि । इत्र चढाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । वस्त्रं समर्पयामि । मौली का टुकड़ा अथवा वस्त्र चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । गन्धं समर्पयामि । रोली या लाल चन्दन चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । अक्षतान् समर्पयामि । चावल चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । पुष्पं समर्पयामि । पुष्प चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । धूपम् आघ्रापयामि । धूप करें ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । दीपकं दर्शयामि । दीपक दिखाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । नैवेद्यं निवेदयामि । प्रसाद चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । आचमनीयं जलं समर्पयामि । जल के छीटें दें ।

ॐ धन्वन्तरये नमः। ऋतुफलं समर्पयामि । ऋतुफल चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । ताम्बूलं समर्पयामि । पान , सुपारी , इलायची आदि चढाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । दक्षिणां समर्पयामि । नकदी चढ़ाएँ ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । कर्पूरनीराजनं समर्पयामि । कर्पूर जलाकर आरती करें ।

ॐ धन्वन्तरये नमः । नमस्कारं समर्पयामि । नमस्कार करें ।

अंत में निम्नलिखित मंत्र हाथ से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें ।

अथोदधेर्मथ्यमानात् काश्यपैरमृतार्थिभिः । उदतिष्ठन्महाराज पुरुषः परमाद् भुतः ॥

दीर्घपीवरदोर्दण्डः कम्ब्रुग्रीवोऽरुणेक्षणः । श्यामलस्तरुणः स्रग्वी सर्वाभरणभूषितः ॥

पीतवासा महोरस्कः सुमृष्टमणिकुण्डलः । स्निग्धकुंञ्चितकेशान्तः सुभगः सिंहविक्रमः ॥

अमृतापूर्णकलशं विभ्रद् वलयभूषितः । स वै भगवतः साक्षाद्विष्णोरंशांशसमम्भवः ॥

इस प्रकार प्रार्थना करने के उपरान्त भगवान् धन्वन्तरि से अपने , अपने परिजनों एवं मित्रों के आरोग्य की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें और साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करें ।

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Last Updated : November 01, 2010

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