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अक्रूर [akrūra] a. a. [न. त.] Not cruel.
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अक्रूर n. (सो. वृष्णि.) श्वफल्क को गांदिनी से उत्पन्न पुत्र । इसको आसंग आदि ग्यारह बंधु तथा सुचिरा नामक भगिनी थी [भा.९.२४,१५.१८] । आहुक के कन्या सुतनु इसकी पत्नी थी [म.स.१३.३२] । इस पर कंस तथा राम-कृष्ण का समान ही विश्वास था । रामकृष्ण का कांटा दूर करने के उद्देश्य से कंस नें उन्हे मथुरा लाने के लिये अक्रूर को भेजा । यह कार्य स्वीकार कर राम-कृष्ण को लेकर अक्रूर मथुरा आया । मार्ग में यमुना में स्नान करते समय डुबकी लगाने पर पर अक्रूर को राम-कृष्णका साक्षात्कार हुआ [भा.१०.३९.४१] ;[ह. वं. २.२६] । उसी प्रकार, धृतराष्ट्र पांडवों से अच्छा व्यवहार करता है या नहीं इसे बारीकी से देखने के लिये कृष्ण ने अक्रूर को ही हस्तिनापूर भेजा था [भा.१०.४९] । कुन्ती ने भी अपनी स्थिति मुक्तहृदय सें इसको बताई थी । उसी प्रकार, धृतराष्ट्र को भी कुछ उपदेश इसने दिया था, परंतु उसका कुछ लाभ न होगा, यह इसे धृतराष्ट्र के भाषण से मालूम हो गया [भा.१०.४८] । कृष्ण ने स्यमन्तक मणि के लिये शतधन्वा की हत्या की, इसकी सूचना मिलते ही भय से अक्रूर ने मथुरा का त्याग कर दिया। अक्रूर मथुरा से कहॉं गया, इसका उल्लेख यद्यपि भागवत में नहीं है, तथापि वह काशी गया था ऐसी आख्यायिका है । काशीस्थित वर्तमान अक्रूरघाट से इस आख्यायिका है । काशीस्थित वर्तमान अक्रूरघाट से इस आख्यायिका की पुष्टी होती है । उस समय कृष्ण नें सभ्यता से अक्रूर को बताया कि, मेरे पास स्यमन्तक है ऐसा संशय लोगों को है, इस लिये मणि दिखा कर तुम सब का संशयनिवारण कर दो । तब अक्रूर ने मणि दिखा कर सब का संशयनिवारण किया [भा. १०. ५६-५७] । द्रौपदी के स्वयंवरार्थ आये हुए राजाओं में अक्रूर था [म.आ.१७७-१७] । युधिष्ठिर के दरबार में बैठनेवाले राजाओं में भी इसका उल्लेख है [म.स.४.२७,१३.३२] । एक बार सूर्यग्रहण के पर्वकाल में यह स्यमन्तपंचकक्षेत्र में गया था [भा. १०.८२.५] । यादवी के समय अक्रूर एवं भोज में युद्ध हो कर दोनों मृत हो गये [भा.११.३०.१६] । बभ्रु यह अक्रूर का नामान्तर है, ऐसा कहने के लिये आधार है (बभ्रु १० देखिये) । कई स्थानों पर इसको दानपति कहा गया है [भा.१०.३६.२८, ४९.२६] । इसको देववत् एवं उपदेव नामक दो पुत्र थे [भा.९.२४.१८] ।
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अ-क्रूर mfn. mfn. not cruel, gentle
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-रः N. N. of a Yādava, a friend and uncle of Kṛiṣṇa. [It was he who induced Balarāma and Kṛiṣṇa to go to Mathurā and kill Kaṁsa. He told the two brothers how their father Ānakadundubhi, the princess Devakī and even his own father Ugrasena had been insulted by the iniquitous demon Kaṁsa, and told them why he had been despatched to them. Kṛiṣṇa consented to go and promised to slay the demon within 3 nights, which he succeeded in doing.]
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