शुक्रवार की आरती

आरतीमे उस उपास्य देवताकी स्तुती की जाती है, जिसकी पूजा या व्रत किया जाता है ।


शुक्रवार की आरती

आरती लक्ष्मण बाल जती की । असुर संहारन प्राणपति की ॥

जगमग ज्योति अवधपुरी राजे । शेषाचल पर आप विराजे ॥

घंटाताल पखावज बाजै । कोटि देव आरती साजै ॥

क्रीटमुकुट कर धनुष विराजै । तीन लोक जाकि शोभा राजै ॥

कंचन थार कपूर सुहाई । आरती करत सुमित्रा माई ॥

प्रेम मगन होय आरती गावैं । बसि बैकुण्ठ बहुरि नहीं आवैं ॥

भक्ति हेतु हरि लाड़ लड़ावै । जब घनश्याम परम पद पावैं ॥



शुक्रवार के दिन संतोषीमाताकी आरती भी मान्य है ।

संतोषी माता की आरती

जय संतोषी माता, जय जय संतोषी माता ।

अपने सेवक जन को सुख संपत्ति दाता ॥

सुंदरी चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो ।

हीरा पन्ना दमके तन सिंगार लीन्हो ॥

गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे ।

मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर ढुरे प्यारे ।

धूप, दीप, नैवेद्य, मधुमेवा भोग धरे न्यारे ॥

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Last Updated : February 12, 2013

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