तत्त्वान्वय का - ॥ समास पहला - वाल्मीकस्तवननिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
धन्य धन्य वह वाल्मीक । ऋषियों में जो पुण्यश्लोक । जिसके कारण यह त्रिलोक । पावन हुआ ॥१॥
भविष्य और शतकोटि । जो न देख पाई ये दृष्टि । खोजें भी सकल सृष्टि । श्रुत नहीं ॥२॥
भविष्य का एक वचन । कदाचित हुआ प्रमाण । फिर भी आश्चर्य मानते जन । भूमंडल के ॥३॥
न रहते रघुनाथ अवतार । नहीं देखा शास्त्राधार । रामकथा का विस्तार । विस्तारित किया जिसने ॥४॥
ऐसा जिस का वाग्विलास । सुनकर संतुष्ट हुआ महेश । फिर त्रैलोक्य के किया विभाजित । शतकोटि रामायण ॥५॥
जिनका कवित्व शंकर ने देखा । अनुमान न कर सके दूसरा । राम उपासकों को हुआ । परम समाधान ॥६॥
थे ऋषि श्रेष्ठ अपार । बहुतों ने किया कवित्वविचार । मगर वाल्मीक जैसा कविश्वर । न भूतो न भविष्यति ॥७॥
थे किये पहले दुष्ट कर्म । परंतु हुआ पावन लेकर रामनाम । दृढ नेम से जपने पर नाम । पुण्य ने सीमा लांघी ॥८॥
उल्टा नाम जपते ही वाणी से । टूटे पर्वत पापों के । ध्वज फहराये पुण्य के । ब्रह्मांड पर ॥९॥
वाल्मीक ने जहां तप किया । वह वन पुण्यपावन हुआ । शुष्क काष्ठ अकुरित हुये । तपबल से जिसके ॥१०॥
मछुवा था वाल्हा पूर्व काल में । जीव घातकी भूमण्डल में । उसे ही वंदन करते प्रभात काल में । विबुधि और ऋषीश्वर ॥११॥
उपरति और अनुताप । वहां कैसे बचेगा पाप । देहात तप से पुण्यरूप । दुसरा जन्म हुआ ॥१२॥
देह आसनस्थ हुआ अनुताप से । बांबी बना शरीर उससे । नाम आगे उसी से । वाल्मीक ऐसे ॥१३॥
बाबी को वल्मीक कहा जाता । इस कारण वाल्मीक नाम शोभता । जिसके तीव्र तप से कांपता । हृदय तपस्वियों का ॥१४॥
जो तपस्वियों में श्रेष्ठ । जो कवीश्वरों में वरिष्ठ । जिसके बोलना स्पष्ट । निश्चयात्मक ॥१५॥
जो निष्ठावंतों का मंडन । रघुनाथ भक्तों का भूषण । जिसकी धारणा असाधारण । साधकों को दृढ करे ॥१६॥
धन्य वाल्मीक ऋषेश्वर । समर्थ का कवीश्वर । उसे मेरा नमस्कार । साष्टांग भाव से ॥१७॥
वाल्मीक ऋषी न बोलता । तो कैसे हमें रामकथा । इस कारण समर्थ का । कैसे वर्णन करें ॥१८॥
रघुनाथकीर्ति प्रकट किया । जिससे उसका महत्त्व बढ़ा । भक्त मंडली को सुख हुआ । श्रवण मात्र से ॥१९॥
अपना काल सार्थक किया । रघुनाथ कीर्ति में डूब गया । भूमंडल में उद्धार किया । बहुत लोगों का ॥२०॥
रघुनाथ भक्त एक से एक बढकर । महिमा जिनकी अपार । उन समस्तों का किंकर । रामदास कहे ॥२१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे वाल्मीकस्तवननिरूपणनाम समास पहला ॥१॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 09, 2023

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP