भीमदशक - ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥

३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
कर्म किया हुआ ही करें । ध्यान धरा हुआ ही धरें । विवरण किया हुआ करें । पुनः निरूपण में ॥१॥
वैसे ही हमारे साथ हुआ । कहा हुआ ही कहना पड़ा । क्योंकि जो बिगड़ा वही पाना । चाहिये समाधान ॥२॥
अनन्य रहे समुदाय । इतर जनों में उपजे भाव । ऐसा है अभिप्राय । उपाय का ॥३॥
मुख्य हरिकथानिरूपण । दूसरा बह राजकारण । तीसरा वह सावधपन । सर्वविषयक ॥४॥
चौथा अत्यंत साक्षेप । निरसन करें नाना आक्षेप । अन्याय बडा अथवा अल्प । क्षमा करते रहें ॥५॥
जानिये परों का अंतर । उदासीनता निरंतर । नीतिन्याय से अंतर । होने ही न दें ॥६॥
संकेत से लोग आकृष्ट करें । हर एक को प्रबोधित करें । प्रपंच भी सवारें । यथानुशक्ति ॥७॥
प्रपंच समय पहचानें । धीरज बहुत रखें । संबंध बढ़ने ना दें । अति परिचय से ॥८॥
उपाधि का विस्तार करें । उपाधि में न फंसें । नीचत्व पहले ही स्वीकार करें । और मूर्खता भी ॥९॥
दोष देखकर ढाँके । अवगुण अखंड ना कहें । दुर्जन दिखें तो छोड़ दें । परोपकार करके ॥१०॥
सनकी ना ही बनें । नाना उपाय सोचें । असंभव कार्य संभव करें । दीर्घ प्रयत्नों सें ॥११॥
समुदाय टूटने से बचायें । प्रसंग आने पर सवारें । अतिवाद ना करें। किसी से भी ॥१२॥
दूसरों का अभीष्ट' जानें । बहुतों का बहुत सहें । सहन ना हो फिर प्रयाण करें । दिगंतर में ॥१३॥
दुःख दूसरों के जानें । सुनकर फिर बांट लें । भला बुरा सहन करें । समुदाय का ॥१४॥
पठन करें अपार । सन्निध ही रहें विचार । सदा सर्वदा तत्पर । परोपकार के लिये ॥१५॥
शांति करके करवायें । सनक छोड़कर छुडवायें । क्रिया करके करवायें । बहुतों से ॥१६॥
करना हो अगर अपाय । फिर भी बोलकर न दिखायें । परस्पर ही प्रत्यय । प्रचीति में लायें ॥१७॥
जो बहुतों का सहे ना । उसे बहुत लोग मिलेना । सारा ही सहने पर भी रहेना । महत्त्व अपना ॥१८॥
राजकारण बहुत करें । मगर पता ही न लगने दें । परपीडा पर ना रहें । अंतःकरण ॥१९॥
लोग परखकर त्यागें । चतुराई से अभिमान दूर करें । पुनः उन्हें जोड लें । जिनसे हुआ अंतर ॥२०॥
चिढ़खोर को दूर धरें । बकवासी से बात ना करें । संबंध आने पर छोड़कर जायें । दूसरी जगह ॥२१॥
ऐसा है राजकारण । कहने के लिये वह असाधारण । सुचित रहे अंतःकरण । तभी राजकारण समझे ॥२२॥
वृक्षारुढ को उठायें । युद्धकर्ता को ढकेल दें । कारोबार का कैसे कहे । उचित ढंग ॥२३॥
खोजने पर मिलेना । कीर्ति बताने पर भी ठहरेना । मिले वैभव की अभिलाषा धरेना । कभी भी ॥२४॥
एक का पक्ष लें । दूसरों का द्वेष करे । नहीं लक्षण ये । चातुर्य के ॥२५॥
न्याय कहने पर भी मानेना । आत्महित समझेना । यहां कुछ भी चलेना । त्याग के बिना ॥२६॥
श्रोताओं ने समझकर आक्षेप किया । इस कारण कहा हुआ ही कहा । न्यूनपूर्ण क्षमा करना । चाहिये श्रोताओं ने ॥२७॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे राजकारणनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 05, 2023

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP