भोजनके बादके कृत्य

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


भोजनके बादके कृत्य
हलका विश्राम-
भोजनके बाद हलका विश्राम अपेक्षित है । किंतु दिनमें सोना मना है । भोजनके बाद लगभग सौ कदम चलकर आठ साँसतक चित्त, सोलह साँसतक दायीं करवट और बत्तीस साँसतक बायीं करवट लेट जाना चाहिये । इससे पाचनमें सुविधा होती है और आलस्य भी दूर हो जाता है ।

पुराण आदिका अनुशीलन-
विश्रामके बाद अपने कर्तव्यकार्योमें संलग्न हो जाना चाहिये । शास्त्रने कहा है कि भोजनके बाद इतिहास, पुराण और धर्मशास्त्र आदिके अनुशीलनमें तथा अपने जीविकोपार्जनमें समयका सदुपयोग करना चाहिये । व्यर्थ समय न खोये ।

लोकयात्रा और संध्योपासन-
सूर्यके अस्त होनेसे सवा घंटा पहले मन्दिरोंमें दर्शनके लिये निकले । तेजीसे चले ताकि भ्रमणका कार्य भी हो जाय । वैसे प्रात: भ्रमणका अत्यधिक महत्त्व है । सूर्यास्तसे २४ मिनट पहले संध्योपासनके लिये बैठ जाना चाहिये । इसके पहले पैर, हाथ, मुख धोकर धोती बदलकर आचमन कर लेना चाहिये । सायंकाल भी स्नान कर सकते हैं, पर आवश्यक नहीं है ।
संध्योपासनके बाद नित्य एकाग्रतासे भगवत्स्मरण करे तथा अपने इष्टदेवका जप करे । कपडा धोकर भगवान्‍पर चढे चन्दन आदिको पोंछ देना चाहिये । भोग लगाकर आरती उतारनी चाहिये । शयन कराना चाहिये ।

सांध्यदीप-
सूर्यास्तके समय दीपक जला देना चाहिये । इससे लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है । जलानेके बाद निम्नलिखित मन्त्रोंसे दीपकको प्रकाशरुप ब्रह्म समझकर प्रणाम करे-
दीपो ज्योति: परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन: ।
दीपो हरतु मे पापं सांध्यदीप ! नमोऽस्तु ते ॥
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखसम्पदम्‍ ।
शत्रुबुद्धिविनाशं च दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥
दीपकको दीवट या अक्षत आदिपर रखना चाहिये । सीधे जमीनपर रखना मना है । सायंकालिक भोजन कर दिनभरके अपने कृत्योंका सिंहावलोकन करना चाहिये ।
आत्मनिरीक्षण एवं प्रभुस्मरण-रात्रिमें सोनेके पूर्व प्रत्येक व्यक्तिको कुछ समयके लिये आत्मनिरीक्षण करना चाहिये कि मेरे शरीर, वचन और मनसे शास्त्रके विपरीत कोई क्रिया तो नहीं हो गयी और यदि हो गयी हो तो उसके लिये भगवन्नामका जप और आगे न हो, इसके लिये मनमें संकल्प करे । दिनभर प्रत्येक कर्ममें भगवान्‍का स्मरण होता रहा है या नहीं ? यदि नहीं तो कातरभावसे भगवान्‍से प्रार्थना करनी चाहिये कि उनका निरन्तर स्मरण बना रहे । सोनेसे पूर्व गुरुजनोंकी सेवा करनी चाहिये । तदनन्तर भगवान्‍की मानसिक सेवा करते हुए उन्हींके चरणोंमे सो जाय ।

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Last Updated : December 02, 2018

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