हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्रीनारदपुराण|पूर्वभाग|प्रथम पाद|
भगवत्‌‍-भजनका माहात्म्य

प्रथम पाद - भगवत्‌‍-भजनका माहात्म्य

` नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।


श्रीसनकजी कह्ते हैं -

मुने ! इसके बाद मैं भगवान् ‌‍ विष्णुकी विभूतिस्वरूप मनु और इन्द्र आदिका वर्णन करूँगा । इस वैष्णवी विभूतिका श्रवण अथवा कीर्तन करनेवाले पुरुषोंका पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। एक समय वैवस्वत मन्वन्तरके इन्द्र सुधर्मके निवास - स्थानपर गये । देवर्षे ! बृहस्पतिजीके साथ देवराजको आया देख सुधर्मने आदरपूर्वक उनकी यथायोग्य पूजा की । सुधर्मसे पूजित हो इन्द्रने विनयपूर्वक कहा

इन्द्र बोले -

विद्वन् ‌ ! यदि आप बीते हुए ब्रह्यकल्पका वृत्तान्त जानते हैं तो बताइये । मैं यही पूछनेके लिये गुरुजीके साथ आया हूँ । देवराज इन्द्रके ऐसा कहनेपर सुधर्म हँस पड़ा और उसने विनयपूर्वक पूर्वकल्पकी सब बातोंका विधिवत् ‌‍ वर्णन किया ।

सुधर्मने कहा -

इन्द्र ! एक सहस्त्र चतुर्युगीका ब्रह्माजीका एक दिन होता है और उनके एक दिनमें चौदह मनु , चौदह इन्द्र तथा पृथक् ‌- पृथक ‌‍ अनेक प्रकारके देवता हुआ करते हैं । वासव ! सभी इन्द्र और मनु आदि तेज , लक्ष्मी , प्रभाव और बलमें समान ही होते हैं । मैं उन सबके नाम बतलाता हूँ , एकाग्रचित्त होकर सुनो । सबसे पहले स्वायम्भुव मनु हुए । तदनन्तर क्रमश : स्वारोचिष , उत्तम , तामस , रैवत , चाक्षुष , सातवें वैवस्तत मनु , आठवें सूर्यसावर्णि और नवें दक्षसावर्णि हैं । दसवें मनुका नाम ब्रह्यसावर्णि और ग्यारहवेंका धर्मसावर्णि है । तदनन्तर बारहर्वे रुद्रसावर्णि तथा तेरहवें रोचमान हुए । चौदहवें मनुका नाम भौत्य बताया गया है । ये चौदह मनु हैं । देवराज ! अब मैं देवताओं और इन्द्रोंका वर्णन करता हूँ , सुनो । स्वयम्भू मन्वन्तरमें देवतालोग यामके नामसे विख्यात थे । उनके परम बुद्धिमान् ‌‍ इन्द्रकी शचीपति नामसे प्रसिद्धि थी । स्वारोचिष मन्वन्तरमें पारावत और तृषित नामके देवता थे । उनके स्वामी इन्द्रका नाम विपश्चित था । वे सब प्रकारकी सम्पदाओंसे समृद्ध थे । तीसरे उत्तम नामक मन्वन्तरमें सुधामा , सत्य , शिव तथा प्रतर्दन नामवाले देवता थे । उनके इन्द्र सुशानि नामसे प्रसिद्ध थे । चौथे तामस मन्वन्तरमें सुपार , हरि , सत्य और सुधी - ये देवता हुए थे । शक्र ! उन देवताओंके इन्द्रका नाम उस समय शिबि था । पाँचवें ( रैवत ) मन्वन्तरमें अमिताभ आदि देवता थे और पाँचवें देवराजका नाम विभु कहा गया है । छठे ( चाक्षुष ) मन्वन्तरमें आर्य आदि देवता बताये गये हैं । उन सबके इन्द्रका नाम मनोजव था । इस सातवें वैवस्वत मन्वन्तरमें आदित्य , वसु तथा रुद्र आदि देवता हैं और सम्पूर्ण भोगोंसे सम्पन्न आप ही इन्द्र हैं । आपका विशेष नाम पुरन्दर बताया गया है । आठवें सूर्यसावर्णि मन्वन्तरमें अप्रमेय तथा सुतप आदि होनेवाले देवता बताये जाते हैं । भगवान् ‌‍ विष्णुकी आराधनाके प्रभावसे राजा बलि उनके इन्द्र होंगे । नवें दक्षसावर्णि मन्वन्तरमें पार आदि देवता होंगे और उनके इन्द्रका नाम अद्भुत बताया जाता है । दसवें ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तरमें सुवासन आदि देवता कहे गये हैं । उनके इन्द्रका नाम शान्ति होगा । ग्यारगवें धर्मसावर्णि मन्वन्तरमें विहङ्रम आदि देवता होंगे और उनके इन्द्र वृष नामसे प्रसिद्ध होंगे । बारहवें रुद्रसावर्णि मन्वन्तरमें हरित आदि देवता तथा ऋतुधामा नामवाले इन्द्र होंगे । तेरहवें रोचमान या रौच्य नामक मन्वन्तरमें सुत्रामा आदि देवता होंगे । उनके महापराक्रमी इन्द्रका नाम दिवस्पति कहा जाता है । चौदहवें भौत्य मन्वन्तरमें चाक्षुष आदि देवता होंगे और उनके इन्द्रकी शुचि नामसे प्रसिद्धि होगी । देवराज ! इस प्रकार मैंने भूत और भविष्य मनु , इन्द्र तथा देवताओंका तथार्थ वर्णन किया है । ये सब ब्रह्याजीके एक दिनमें अपने अधिकारका उपभोग करते हैं । सम्पूर्ण लोकों तथा सभी स्वर्गोंमें एक ही तरहकी सृष्टि कही गयी है । उस सृष्टिके विधाता बहुत हैं । उनकी संख्या यहाँ कौन जानता है ? देवराज ! मेरे ब्रह्यलोकमें रह्ते समय बहुत - से ब्रह्मा आये और चले गये । आज मैं उनकी संख्या बतानेमें असमर्थ हूँ । इस स्वर्गलोकमें आकर भी मेरा जितना समय बीता है , उसको सुनो -’ अबतक चार मनु बीत गये , किंतु मेरी समृद्धिका विस्तार बढ़ता ही गया । प्रभो ! अभी मुझे सौ करोड़ा युगोंतक यहीं रहना है । तत्पश्चात् ‌ मैं कर्मभूमिको जाऊँगा । ’ महात्मा सुधर्मके ऐसा कहनेपर देवराज मन - ही - मन बड़े प्रसन्न हुए और निरन्तर भगवान् ‌‍ विष्णुकी आराधनामें लग गये । यद्यपि देवतालोग स्वर्गका सुख भोगते हैं तथापि वे सब इस भारतवर्षमें जन्म पानेके लिये लालायित रहते हैं । जो भगवान् ‌‍ नारायणकी पूजा करते हैं , उन महात्माओंकी पूजा सदा ब्रह्म आदि देवता किया करते हैं । जो महात्मा सब प्रकारके संग्रह - परिग्रहका त्याग करके निरन्तर भगवान् ‌ नारायणके चिन्तनमें लगे रह्ते हैं , उन्हें भयङ्कर संसारका बन्धन कैसे प्राप्त हो सकता है ? यदि कोई उन महापुरुषोंके सङ्रका लोभ रखते हैं तो वे भी मोक्षके भागी हो जाते हैं । जो मानव प्रतिदिन सब प्रकारकी आसक्तियोंका त्याग करके गरुड़वाहन भगवान् ‌‍ नारायणकी अर्चना करते हैं , वे सम्पूर्ण पापराशियोंसे सर्वथा मुक्त होकर हर्षपूर्ण हृदयसे भगवान् ‌‍ विष्णुके कल्याणमय पदको प्राप्त होते हैं । जो मनुष्य आसक्तिरहित तथा पर - अवर ( उत्तम - मध्यम , शुभ - अशुभ )- के ज्ञाता हैं और निरन्तर देवगुरु भगवान् ‌ नारायणका चिन्तन करते रह्ते हैं , उस ध्यानसे उनके अन्त : करणकी सारी पापराशि नष्ट हो जाती है और वे फिर कभी माताके स्तनोंका दूध नहीं पीते । जो मानव भगवान्‌की कथा श्रवण करके अपने समस्त दोष - दुर्गुण दूर कर चुके हैं और जिनका चित्त भगवान् ‌‍ श्रीकृष्णके चरणारविन्दोंकी आराधनामें अनुरक्त है , वे अपने शरीरके सङ्र अथवा सम्भाषणसे भी संसारको पवित्र करते हैं , अतः सदा श्रीहरिकी ही पूजा करनी चाहिये । ब्रह्मन् ‌‍ ! जैसे नीचि भूमिमें इधर - उधरका सारा जल ( सिमट - सिमटकर ) एकत्र हो जाता है , उसी प्रकार जहाँ भगवत्पूजापरायण शुद्धचित्त महापुरुष रहते हैं , वहीं सम्पूर्ण कल्याणका वास होता है । भगवान् ‌‍ विष्णु हि सबसे श्रेष्ठ बन्धु हैं । वे ही सर्वोत्तम गति हैं । अतः उन्हींकी निरन्तर पूजा करनी चाहिये , क्योंकि वे ही सबकी चेतनाके कारण हैं । मुनिश्रेष्ठ ! तुम स्वर्ग और मोक्षफलके दाता सदानन्दस्वरूप निरामय भगवान् ‌ श्रीहरिकी पूजा करो । इससे तुम्हें परम कल्याणकी प्राप्ति होगी ।

N/A

References : N/A
Last Updated : May 06, 2013

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP