देवातिथि (काण्व) n. एक सूक्तद्रष्टा
[ऋ.८.४] । इसके सूक्त में रुम, रुशम, श्यावक तथा कृप का उल्लेख है
[ऋ.८.४.२] , तथा अन्त में कुरुंग दानस्तुति की है
[ऋ.८.४.१९] । एकबार अकाल पडा । यह अपने पुत्रों के साथ कंदमूल लाने के लिये अरण्य गया । वहॉं इसे कूष्मांड के फल प्राप्त हुएँ । इसने एक साम कह कर, उन फलों को गायों में परिवार्तित कर दिया
[पं.ब्रा.९.२.१९] ।
देवातिथि (काण्व) II. n. (सो. कुरु.) क्रोधन एवं कंडू का पुत्र । विष्णु, मत्स्य तथा वायु पुराणों में इसे अक्रोधन का पुत्र कहा गया है । वैदर्भी मर्यादा इसकी स्त्री थी एवं ऋष्य वा रुच इसका पुत्र था
[म.आ.९०.२२,९२२.११] ।