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श्रीशालग्राम-पूजन
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
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शालग्राम
Meanings: 8; in Dictionaries: 5
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शिलादान
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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महादेवी
Meanings: 14; in Dictionaries: 6
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शालिग्राम
Meanings: 6; in Dictionaries: 6
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धर्मसिंधु - अस्थिसंचयन
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे.
This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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पददानें
अंत्येष्टि म्हणजे शेवटचा होम.
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धर्मसिंधु - गृहलिङ्गपूजन
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे.
This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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स्वर्णम्
Meanings: 36; in Dictionaries: 2
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धर्मसिंधु - ११ व्या दिवशीं रुद्रगणश्राद्ध.
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे.
This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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कार्तिक माहात्म्य - अध्याय ३३
कार्तिक माहात्म्य वाचल्याने गतजन्मातील पापे नष्ट होतात.
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६८
Meanings: 4; in Dictionaries: 4
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संकेत कोश - संख्या ६८
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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शालग्रामस्तोत्रम्
विष्णू हि सर्वोच्च शक्ती असून, त्रिमूर्ती ब्रह्मा, विष्णू आणि महेश यांपैकी, भगवान विष्णूचे कार्य विश्वाचा सांभाळ आणि प्रतिपाळ करणे आहे Vishnu,also known as Narayana is the Supreme Being or Ultimate Reality In the Trimurti, Vishnu is responsible for the maintenance or 'preservation' of the universe,
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रहूगण
Meanings: 6; in Dictionaries: 3
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तृतीयपरिच्छेद - पंचसूत्रीनिर्णय
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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उत्तरखण्डः - अध्यायः ८५
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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उत्तरखण्डः - अध्यायः ५८
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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१३
Meanings: 20; in Dictionaries: 4
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तृतीय परिच्छेद - अंत्यकर्म
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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नृसिंह
Meanings: 17; in Dictionaries: 8
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श्री परशुराम माहात्म्य - अध्याय ८
श्री परशुराम माहात्म्य वाचल्याने अपत्यसुख प्राप्त होते शिवाय शत्रूंपासून संरक्षण मिळते.
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द्वितीय पाद - जडभरत और सौवीरनरेशका संवाद
` नारदपुराण ’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
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माला १०१ ते १५०
श्री. प. प.वासुदेवानन्दसरस्वतीकृत दत्तमालावर्णांकितमाघमाहात्म्य
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भरत राजा
भक्तो और महात्माओंके चरित्र मनन करनेसे हृदयमे पवित्र भावोंकी स्फूर्ति होती है ।
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संकेत कोश - संख्या १३
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १
भारतीय जीवन-धारा में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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षष्ठ पटल - पशुभावप्रशंसा
रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।
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अध्याय २५
संतकवी महीपतीबोवा ताहराबादकर विरचित
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स्वर्गखण्डः - अध्यायः ३८
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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श्री परशुराम माहात्म्य - अध्याय ९
श्री परशुराम माहात्म्य वाचल्याने अपत्यसुख प्राप्त होते शिवाय शत्रूंपासून संरक्षण मिळते.
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माला १५१ ते २००
श्री. प. प.वासुदेवानन्दसरस्वतीकृत दत्तमालावर्णांकितमाघमाहात्म्य
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स्वर्गखण्डः - अध्यायः ३१
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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श्रीवामनपुराण - अध्याय ३५
श्रीवामनपुराणकी कथायें नारदजीने व्यासको, व्यासने अपने शिष्य लोमहर्षण सूतको और सूतजीने नैमिषारण्यमें शौनक आदि मुनियोंको सुनायी थी ।
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः २१६
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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श्री परशुराम माहात्म्य - अध्याय १४
श्री परशुराम माहात्म्य वाचल्याने अपत्यसुख प्राप्त होते शिवाय शत्रूंपासून संरक्षण मिळते.
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संकेत कोश - संख्या ८
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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ब्रह्मकाण्डः - अध्यायः २६
विष्णू पुराणाचा एक भाग असलेल्या गरूड पुराणात मृत्यूनंतरच्या स्थितीबद्दलची चर्चा आहे, शिवाय श्रद्धाळू हिंदू धर्मीयांमध्ये मृत्यूनंतर जी विविध क्रिया कर्मे केली जातात, त्याला गरूडपुराणाची पार्श्वभूमी आहे.
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अध्याय १
संतकवी महीपतीबोवा ताहराबादकर विरचित
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विवेकसार - षष्टम वर्णकम्
श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीमद्रामेन्द्र यांचे शिष्य श्रीमद्वासुदेवेन्द्रस्वामी या सत्पुरूषांनी संस्कृत भाषेत " विवेकसार " गद्यग्रंथ रचला .
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प्रथम पाद - तुलसी महिमा
` नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
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श्रीवामनपुराण - अध्याय ८५
श्रीवामनपुराणकी कथायें नारदजीने व्यासको, व्यासने अपने शिष्य लोमहर्षण सूतको और सूतजीने नैमिषारण्यमें शौनक आदि मुनियोंको सुनायी थी ।
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प्रथम पाद - सत्सड्गकी माहिमा
` नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
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पूजा विधी - श्रीशालग्राम पूजनम्
जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।
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द्वापरयुगसन्तानः - विषयानुक्रमणिका
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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मन्त्रमहोदधि - द्वाविंश तरङ्ग
`मन्त्रमहोदधि' इस ग्रंथमें अनेक मंत्रोंका समावेश है, जो आद्य माना जाता है।
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परशुराम
Meanings: 37; in Dictionaries: 9
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श्रीनरसिंहपुराण - अध्याय ६४
अन्य पुराणोंकी तरह श्रीनरसिंहपुराण भी भगवान् श्रीवेदव्यासरचित ही माना जाता है ।
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श्रीसिध्दान्तबोध - अध्याय १२ वा
‘श्रीसिध्दान्तबोध’ हा संतकवि श्रीशहामुनि यांचा ग्रंथ म्हणजे मराठी वाड्मयाच्या खाणींतील एक तेजस्वी हिरा आहे.
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अध्याय ५७
संतकवी महीपतीबोवा ताहराबादकर विरचित
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