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राम रमझानी यारी जीवके ॥ ...

भजन - राम रमझानी यारी जीवके ॥ ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


राम रमझानी यारी जीवके ॥

घटमें प्रान अपान दुहाई, अरध उरध आवै अरु जाई ॥

लेके प्रान अपान मिलावै वाही पवनतें गगन गरजावै ॥

गरजै गगन जो दामिनि दमकै मुक्ताहल रिमझिम तहँ बरखै ॥

वा मुक्तामहँ सुरति पिरोवै सुरति सब्द मिलि मानिक होवै ॥

मानिक जोति बहुत उजियारा, कह 'यारी' सोइ सिरजनहारा ॥

साहब सिरजनहार गुसाईं, जामें हम, सोई हम मँही ॥

जैसे कुंभ नीर बिच भरिया, बाहर-भीतर खालिक दरिया ॥

उठ तरंग तहँ मानिक मोती, कोटिन चंद सूरकै जोती ॥

एक किरिनिका सकल पसारा, अगम पुरुष सब कीन्ह नियार ॥

उलटि किरिन जब सूर समानी, तब आपनि गति आपुहि जानी ॥

कह 'यारी' कोई अवर न दूजा, आपुहिं ठाकुर आपहिं पूजा ॥

पूजा सत्त पुरुषका कीजै, आपा मेति चरन चित दीजै ॥

उनमुनि रहनि सकलकोत्यागी, नवधा प्रीति बिरह बैरागी ॥

बिनु बैराग भेद नहिं पावै, केतो पढ़ि-पढ़ि रचि-रचि गावै ॥

जो गावै ताको अरथ बिचार, आपु तरै, औरनको तारे ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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