भजन - रुपरसिक , मोहन , मनोज -मन...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


रुपरसिक, मोहन, मनोज-मन-हरन, सकल-गुन-गरबीले ।

छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥टेक॥

रतन-जटित सिर मुकुट लटक रहि सिमट स्याम लट घुँघरारी ।

बाल बिहारी कन्हैयालाल, चतुर, तेरी बलिहारी ॥

लोलक मोती कान कपोलन झलक बनी निरमल प्यारी ।

ज्योति उज्यारी, हमैं हरबार दरस दै गिरिधारी ॥

बिज्जुछटा-सी दंतछटा मुख देखि सरदससि सरमीले ।

छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥

मंद हसन, मृदु बचन तोतले, बय किसोर भोली-भाली ।

करत चोचले, अमोलक अधर पीक रच रही लाली ॥

फूल गुलाब चिबुक सुंदरता, रुचिर कंठछबि बनमाली ।

कर सरोजमें,बुंद मेहँदी अति अमंद है प्रतिपाली ॥

फूलछरी-सी नरम कमर करधनीसब्द हैं तुरसीले ।

छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥

झँगुली झीन जरीपट कछनी, स्यामल गात सुहात भले ।

चाल निराली, चरन कोमल पंकजके पात भले ॥

पग नूपुर झनकार परम उत्तम जसुमतिके तात भले ।

संग सखनके, जमुनतट गो-बछरान चरात भले ॥

ब्रज-जुवतिनकौ प्रेम निरखि कर घर-घर माखन गटकीले ।

छैल-छबीले, चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥

गावैं बाग बिलास चरित हरि सरद-रैन-रस रास करैं ।

मुनिजन मोहैं, कृष्ण कंसादिक खल-दल नास करैं ॥

गिरिधारी महराज सदा श्रीब्रजबृंदाबन बास करैं ।

हरिचरित्रकों स्त्रवन सुन-सुन करि अति अभिलाष करैं ॥

हाथ जोरि करि करे बीनती ’नारायन’ दिल दरदीले ।

छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥

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Last Updated : December 24, 2007

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