भजन - मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ।

चितचोर छैल गिरिधारी ॥

ग्रहकारजमें जी न लगत है, खानपान लगै खारी ।

निपट उदास रहत हौं जबते, सूरत देखि तिहारी ॥

संगकी सखी देति मोहिं धीरज, बचन कहत हितकारी ।

एक न लगत कही काहूकी कहति कहति सब हारी ॥

रही न लाज सकुच गुरुजनकी, तन मन सुरति बिसारी ।

नारायन मोहिं समुझि बावरी, हँसत सकल नर नारी ॥

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Last Updated : December 24, 2007

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