भजन - जाहि लगन लगी घनस्यामकी ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जाहि लगन लगी घनस्यामकी ।

धरत कहूँ पग, परत हैं कितहूँ, भूल जाय सुधि धामकी ॥१॥

छबि निहार नहिं रहत सार कछु, घरि पल निसिदिन जामकी ।

जित मुँह उठै तितै ही धावै, सुरति न छाया घामकी ॥२॥

अस्तुति निन्दा करौ भलै ही, मेंड़ तजी कुल गामकी ।

नारायन बौरी भइ डोलै, रही न काहू कामकी ॥३॥

मोहन बसि गयो मेरे मनमें ।

लोक-लाज कुल-कानि छूटि गई, याकी नेह-लगनमें ॥

जित देखों तितही वह दीखै, घर-बाहर, आँगनमें ।

अंग-अंग प्रति रोम-रोममें, छाइ रह्यो तन-मनमें ॥

कुंडल-झलक कपोलन सोहै, बाजूबंद भुजनमें ।

कंकन-कलित ललित बनमाला, नूपुर धुनि चरननमें ॥

चपल नैन, भ्रकुटी बर बाँकी, ठाढ़ो सघन लतनमें ।

नारायन बिन मोल बिकी हौं याकी नैंक हसनमें ॥

मनमोहन जाकी दृष्‍टि परत, ताकी गति होत है और और ।

न सुहात भवन, तन असन बसन, बनहीको धावत दौर दौर ॥१॥

नहिं धरत धीर, हिय बरत पीर, ब्याकुल ह्वै भटकत ठौर ठौर ।

कब अँसुवन भर नारायन मन, झाँकत डोलत पौर-पौर ॥२॥

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Last Updated : December 24, 2007

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