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पदे ११ ते २०

हिंदी पदें - पदे ११ ते २०

मध्वमुनीश्वरांची कविता


पद ११ वें  
मायाका गुलाम न करे सांईकु सलाम ॥ध्रु०॥
कामी कपटी चोर तुफानी मुतफन्नी अलाम रे ॥ उसकू तंबी पहुंचावेगा हजरतका इलाम रे ॥१॥
कवडी उपर जीवडा रे । दुनयाई हराम रे ॥ ऐसा बेइमान इसकू । क्यौ मिलेगा राम रे ॥२॥
नाहक सारी उमर गवांई न लिया हरिका नाम रे ॥ जप्त किया शरीरीका । वैकुंठमें इनाम रे ॥३॥
कहत है माधोनाथ गुसाई बदकारा बदनाम रे ॥ ऐसी सोहबत पकडे उसका । दोजखमें मुकाम रे ॥४॥

पद १२ वें
तूं हे रामजादा रे । मैं तो हरामजादा रे ॥१॥
न करुं तेरी खिजमत रे । मेरेपर तूं खिज मत रे ॥२॥
इस दुनियाकूं जर दे रे । मेरेपर तूं नजर दे रे ॥३॥
जबलग मिलती सबजी जी ।तबलग करते सब जी जी ॥४॥
दो दिनकी ये दौलत जी ।अखर रवाना दो लत जी ॥५॥
बाजे नगारा डुब डुब जी । मायानदीमों डुब डुब जी ॥६॥
जागीर वजुद खेडाह जी । वहां तो बहुत बखेडा जी ॥७॥
तेरा नाम न गाऊं रे । चेलापुरान गाऊ रे ॥८॥
मध्वमुनीश्वर पैदास्ती । उसकी कर तूं निगादास्ती ॥९॥

पद १३ वें
माशुक तेरा मुखडा दिखाव ॥ध्रु०॥
कपटका घुगट खोल सीताबी ।इष्ट मिठाई चखाव ॥१॥
आशक तेरा जिवडा चातक । कर मेहरबरखाव ॥२॥
दिलकागजपर सूरत तेरी । गुरुके हात लिखाव ॥३॥
मध्वमुनीश्वर साई तेरा । असल नाम सिखाव ॥४॥

श्लोक १४ वा
दखनी
बडा नाथमाधो अगडधत्त गुंडा । पिवे घोटकर भांग भरपूर कुंडा ॥ झुले हातमें मस्त लेकर कुतका । नही इसबराबर दुन्यामें उचका ॥१॥
बडा नाथमाधो बहमनमे दुकसबी । गले गोधडी हातमें एक तसबी ॥ धनीकू करे याद हरदम दिवाना । शहरमें पुकारे बुरा है जमाना ॥२॥
पीरोंका मुरीद मुठभर भंग चावे । धनीके बयाने हमेश मस्त गावे ॥ अवल झरझरीकी नली वोढता है । कंकर फोडकरही धुवा छोडता है ॥३॥
गंगाके किनारे बडा तकी है । वहां येक खपरेल बंगला किया है । ताहां नाथमाधो हमेश झूलता है । फकीरकुं नजर देखकर फूलता है ॥४॥
कुसुंबी चिरा बांधकर फेरबिंगी । अगलबंद जामानिमा सब्जरंगी । बडा नाथमाधो बम्हन जोर भंगी । धनीकू करे याद भंगी तरंगी ॥५॥

पद १५ वें
जहां सुरसतीका हुवा जोर संगम । पुराना पडोसी उपर येक जंगम । नीचे मठकी जो चौगीर्द जागा । नजर देखते ही कुफर दूर भागा ॥१॥

पद १६ वें
राखे असल जो इमान । बडा साई मुसलमान ॥ नहीं तो अवस बेइमान । दुनयाबीच रोते है ॥१॥
करे दैलकु जो कैद । बडा सोही येक सैद ॥ नहीं तो सैतानसे कैद । चिकड लगा धोवते ॥२॥
नाथ मेरा महबूब । उसका बंदा सोही खूब ॥ जो नाथमाधोका वकुफ । सुनकर महजुज होते है ॥३॥

दोहरा १७ वा
रुखा पीपलका पात है । जैसा पवनसे जात है ॥वैसी फकीरकी बात है । रमता भला नवखंडमे ॥१॥
अकल फरणीसात है । जिकीर चाहात है । मिठी शकरसो खात है । खटा मकर सब फेक दिया ॥२॥
गुरुनामका अमल पीया । कुफर गनीम सब जेर किया ।अवल उसीने तख्त लिया । भला हुवा अब दिलका ॥३॥
काय बिकट किल्ला बडा । जिसपर धनी आप चढा । आगे फकीर बंदा खडा । करे हमेशा बंदगी ॥४॥
किल्ला बिकट फत्ते किया । जिसपर धनीका तख्त किया । दिलवजुदकू सिरपाव दिया । मेहरबान हुवा माधोनाथ ॥५॥

दोहरा १८ वा
बम्हन पढा है बेदकू । समजा नहीं उसीके भेदकू ॥ पूजे पथरके देवकू । पंडीत हुवा तो क्या हुवा ॥१॥
अंदर नहीं दिल पाक रे । सेवा जिकिरकू च्याख रे ॥ उपर लगावे खाक रे । जोगी हुवा तो क्या हुवा ॥२॥
बाम्धे गलेमो लिंग रे । आगे बजावत सींग रे ॥ खावे मुठी येक भंग रे । जंगम हुवा तो क्या हुवा ॥३॥
माला लिई है हातमे । जपता रहे दिनरातमें ॥ दिल नही उस बातमें । भजनी हुवा तो क्या हुवा ॥४॥
फजर किताबा खोलता । मुझे नसीहत बोलता ॥ अपने अमल नहीं डोलता । काजी हुवा तो क्या हुवा ॥५॥
हुसियार ना अपने वक्त रे । चढे न भेस्तका तख्त रे ॥ भगली ऐसा बदबख्त रे । मुल्ला हुवा तो क्या हुवा ॥६॥
साहेब करता बंदा जुदा । समजा नहीं दिलमें खुदा ॥ फकीर हुवा नहीं अपसुधा । जिंदा हुवा तो क्या हुवा ॥७॥
इस बातसे मध्वनाथ कहे । रबसाईका घर दूर है ॥ नदी दूर रे भरपूर है । जंगल फिरा तो क्या हुवा ॥८॥

दोहरा १९ वा
बम्हन पढा है बेदकू । समजा उसीके भेदकू ॥ पूजे न पथरके देवकू । पंडीत ऐसा सबमें भला ॥१॥
अंदर करे दिल पाक रे । सेवा जिकिरकू च्याख रे ॥ उपर न लगावे खाक रे । जोगी ऐसा सबमें भला ॥२॥
बांधे गलेमो लिंग रे । आगे न बजावत सिंग रे ॥ खावे न बीजया भंग रे । जंगम ऐसा सबमें भला ॥३॥
माला न लेवे हातमे । जपता रहे दिनरातमें ॥ दिल धनीके बातमें । भजनी ऐसा सबमें भला ॥४॥
फजर किताबा खोलता । साची नसीहत बोलता ॥ अपने अमलबीच डोलता । काजी ऐसा समबें भला ॥५॥
हुसियार अपने वक्त रे । चढे बेहस्तका तख्त रे ॥ खुला है उसका बखत रे । मुल्ला ऐसा सबमें भला ॥६॥
साहेब करता बंदा जुदा । समजा है दिलमें वो खुदा ॥ फकीर हुवा है अपसुधा । जिंदा ऐसा सबमें भला ॥७॥
इस बातसे माधोनाथ कहे । नही साईका घर दूर है ॥ नही दूर रे भरपूर है । जंगल फिरा तो सबमें भला ॥८॥

पद २० वें
अंधा रे जग अंधा ॥ध्रु०॥
साहेबसे आपनी प्रीत छांडके । बेइमान हुवा बंदा ॥१॥
बेद किताब कुछ नही माने । प्यारीका सब धंदा ॥२॥
कहत है माधोनाथ गुसाई । निर्मल फकीर चंदा ॥३॥

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Last Updated : May 29, 2017

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