हिन्दी पदावली - पद १ से १०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।


राग टोडी


हरि नांव हीरा हरि नांव हीरा । हरि नांव लेत मिटै सब पीरा ॥टेक॥
हरि नांव जाती हरि नांव पांती । हरि नांव सकल जीवन मैं क्रांती ॥१॥
हरि नांव सकल सुषन की रासी । हरि नांव काटै जम की पासी ॥२॥
हरि नांव सकल भुवन ततसारा । हरि नांव नामदेव उतरे पारा ॥३॥


रांम नांम षेती रांम नांम बारी । हमारै धन बाबा बनवारी ॥टेक॥
या धन की देषहु अधिकाई । तसकर हरै न लागै काई ॥१॥
दहदिसि राम रह्या भरपूरि । संतनि नीयरै साकत दूरि ॥२॥
नामदेव कहै मेरे क्रिसन सोई । कूंत मसाहति करै न कोई ॥३॥


रांमसो धन ताको कहा अब थोरौ । अठ सिधि नव निधि करत निहोरौ ॥टेक॥
हरिन कसिब बधकरि अधपति देई । इंद्रकौ विभौ प्रहलाद न लेई ॥१॥
देव दानवं जाहि संपदा करि मानै । गोविंद सेवग ताहि आपदा करि जानै ॥२॥
अर्थ धरम काम की कहा मोषि मांगै । दास नांमदेव प्रेम भगति अंतरि जो जागै ॥३॥


मंझा प्रांन तूं बीठला । पैडी अटकी हो बाबुला ॥टेक॥
कलि षोटी कुसमल कलिकाल । बंधन मोचउ श्री गोपाल ॥१॥
काटि नरांइण भौचे बंध । सम्रथ दिढकरि ओडौ कंध ॥२॥
नांमदेव नरांइण कीन्ही सार । चले परोहन उतरे पार ॥३॥


रांम रमे रमि रांम संभारै । मैं बलि ताकी छिन न बिचारै ॥टेक॥
रांम रमे रमि दीजै तारी । वैकुंठनाथ मिलै बनवारी ॥१॥
रांम रमे रमि दीजै हेरी । लाज न कीजै पसुवां केरी ॥२॥
सरीर सभागा सो मोहि भावै । पारब्रह्म का जे गुन गावै ॥३॥
सरीर धरे की इहै बडाई । नांमदेव राम न बीसरि जाई ॥४॥


रांम बोले राम बोले राम बिना को बोले रे भाई ॥टेक॥
ऐकल मींटी कुंजर चीटी भाजन रे बहु नाना ।
थावर जंगम कीट पतंगा, सब घटि रांम समाना ॥१॥
ऐकल चिता राहिले निता छूटे सब आसा ।
प्रणवत नांमा भये निहकामा तुम ठाकुर मैं दासा ॥२॥


रांम सो नामा नाम सो रांमा । तुम साहिब मैं सेवग स्वामां ॥टेक॥
हरि सरवर जन तरंग कहावै । सेवग हरि तजि कहुं कत जावे ॥१॥
हरि तरवर जन पंषी छाया । सेवग हरिभजि आप गवाया ॥२॥
नामा कहै मैं नरहरि पाया । राम रमे रमि राम समाया ॥३॥


जन नांमदेव पायो नांव हरी ।
जम आय कहा करिहै बौरै । अब मोरी छूटि परी ॥टेक॥
भाव भगति नाना बिधि कीन्ही । फल का कौन करी ।
केवल ब्रह्म निकटि ल्यौ लागी । मुक्ति कहा बपुरी ॥१॥
नांव लेत सनकादिक तारे । पार न पायो तास हरी ।
नांमदेव कहै सुनौ रे संतौ । अब मोहिं समझि परी ॥२॥


रांमनाम जपिबौ श्रवननि सुनिबौ ।
सलिल मोह मैं बहि नहीं जाईबौ  ॥टेक॥
अकथ कथ्यौ न जाइ । कागद लिख्यौ न माइ ।
सकल भुवनपति मिल्यौ है सहज भाइ ॥१॥
रांम माता रांम पिता रांम सबै जीव दाता ।
भणत नामईयौ छीपौ । कहै रे पुकारि गीता ॥२॥

१०
धृग ते बकता धृग ते सुरता । प्राननाथ कौ नांव न लेता ॥टेक॥
नाद वेद सब गालि पुरांनां । रामनाम को मरम न जाना ॥१॥
पंडित होइ सो बेद बषानै । मूरिष नांमदेव राम ही जानै ॥२॥

N/A

References : N/A
Last Updated : January 02, 2015

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP