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चल चल चल । याद करो गुरु ग...

भारूड - चल चल चल । याद करो गुरु ग...

Bharude is a kind of satirical form of presenting the faults of lay human beings. It was started by Eknath who is revered as a saint.


चल चल चल । याद करो गुरु गारुडकी ।
और आदिपुरुषकी । संत महंतकी । गुणी गुणवंतकी ।
और बडे बडे महाजनकी । बडे बडे सरदारकी ॥१॥
चल चल चल । ये देखो कैसा खेल होता है ।
नग्र कटारी निकाली । सप्त सागर उनके सेवेकूं लगाया है ।
उसमें पांच मुखका नाग देखो है । नागके फणी उपर ऋषेश्वर बैठे है ।
सो उनोनें व्हां होम किया है । उसके मुखमें एक निकल सिरपर बैठी एक कामिनी ॥२॥
चल चल चल । नारीके मुखमें बहोत । बनचर व्यासनेकी इननत ।
चार लक्ष नऊ हजार । एक एकके मुखमें लक्ष लक्ष घोडेस्वार ।
हाती घोडे बहोत निकाल । गिन्नत नहीं लगती है ॥३॥
चल चल चल । निर्गुणा पुरसे मुंगी आई ।
सो सब खेल खा गई । वो स्वरुप देखणे आये ।
सो मर गये ॥४॥
चल चल चल मुंगीके मुखमें । ब्रह्मा विष्णु महादेव बैठे हैं ।
छोडा सब ये खेल । शून्यगिरीपरसे बडा नाम है ।
नामबिना कछु नहीं ॥५॥
चल चल चल । हांडीबाग अवल खेळ कैसा पाया है ।
गुरुके पावके प्रतापसे याद है । अवल क्या है उसे गाम नहीं नाम नहीं ।
रुप रेखा कछु नहीं ॥६॥
चल चल चल । व्हासो धूणी पैदा हुयी है ।
सो ठकडी नाम पाई । भले भले खुटका कर गई ।
स्वर्ग मृत्यु पाताळ । किसीकु छोडा नहीं ॥ अरे हांडीबाग ॥
और कुछ याद हो गया तो बोल । अवल तो ब्रह्म नाम था ॥७॥
चल चल चल । हा तो एक एकके दो ।
दोके तीन । तीनके चार । चारके पांच ।
पांचके पंचीस । पचीसके छत्तीस । छत्तीसके एक ।
सोही ब्रह्म नाम पाया है । सब खेल उसके पाससे हुवा है ॥८॥
चल चल चल । एक दो तीन । त्रिगुण नाम पाया है ।
चार तो चार देह है । पांच तो पंचभूत आत्मा है ।
छे तो षडविकार है । सात तो सप्त धातु है ।
आठ तो अष्ट पाकोळी है । नऊ तो नऊ नाडी नवविध भक्ति है ।
दस तो दस इंद्रियें हैं ॥९॥
चल चल चल । इन्नोने बडे बडे जपी तपी ।
संन्यासी जोगी दिगंबर व्याघ्रांबर और । बहुत जनोकी खोड तोडी है ॥१०॥
चल चल चल । दस पांच पंधरा । छे एकवीस सात अठ्ठावीस ।
आठ छत्तीस तो गुरुके याद है । गुरुनाम सबसे बडा है ।
उन्नोके प्रतापसे ये खेल पाया है ॥११॥
चल चल चल । छत्तीस उपर नऊ पंचेचाळीस ।
पांच दशक कहते है । दशका आकडा एक एक पांच उपर पांच है ।
आवल आख पंचाण्णवका सो बरोबर है । पांच पांच उड गये ।
सो कछु नहीं रह्या । पिछे रह्या एक । उसे नाम नहीं ।
निर्गुण ब्रह्म कहते हैं । शून्य तो एक है ।
व्हांसे माया भयी । सो नामरुप माया है ।
शून्य नहीं तो माया एक नहीं । माया नाम तो रग है ॥१२॥
चल चल चल । वो मायेकू पूज लटका है ।
माया रंग तोड दाली है । सो कछु नहीं ।
सब खेल मायाका है । मायाके रंगमें सब बांध डाले हैं ।
कोई झूटा रह्या नहीं । ऐसी माया सबसी बडी है ।
वोई सब खेल करती है । उसबिना पान हाले नहीं ।
उसका झोला बहुत बुरा है । सो नजर नहीं आवे ॥१३॥
चल चल चल । हांडीबाग । हाहाजी ।
मायासे पार कैसा पडेगा । चौर्‍यांयशी लक्ष फेरी कैसी चुकोंगी ॥१४॥
चल चल चल । नाम अल्लाका बडा है ।
वो अल्ला ब्रह्म नाम बिटपर खडा है ।
सो पंढरपुरमें विठ्ठल ब्रह्म नाम है ।
सर्व साधुसंत रात और दिन ध्यान करत है ।
इसे पार पडेगा । ये नामसे चौर्‍यांयशी लक्ष फेरी नहीं आवेगी ।
इस जागे माया लवंडी है । ये नाम भूल जायगा तो ।
माया डंखीण झोल मारेगी ॥१५॥
चल चल चल । बाबा बाबा आलालाला । मायाका खेल बहुत बूरा है ।
सो कबी नजर न आवे ॥१६॥
चल चल चल । बडे बडेसे लढत है ।
बडे बडे कीं पाव पढत है । सोई बडे आप एकसो सब एक ।
दुजा देखने गया । सो मायेनें घेरलिया ।
एक रह्या सो पार पड गया । वोही अलक्षनाम पाया ।
जनार्दन नाम एक पाया । सो विठ्ठल रुप हो गया ॥१७॥

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Last Updated : November 10, 2013

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